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________________ परिशिष्ट अन्तर् अंतर निरीक्षण का दिवस गांठों को खोलने वाला दिन अन्तर्-निर्माण अन्तर्मुखता अन्याय का प्रतिकार अन्वेषण आवश्यक है अपनी वृत्तियों को संयमित बनाइये अपने आपको सुधारें अपने दुर्गुणों को भी देखें अपने दोषों और दुर्गुणों से लड़ाइयां लड़नी होंगी अपव्यय अप्रामाणिकता का प्रत्याख्यान ब्रह्मचर्य से ब्रह्मचर्य की ओर अभाव, अतिभाव और स्वभाव अभिनंदन मेरा नहीं, अध्यात्म का है अभिभावकों के आचरण अभिभावकों का कर्त्तव्य अभिमान कौन करता है ? " अरिहंत किसे कहते हैं ? अर्थवाद एवं यथार्थवाद अविश्वासी विश्वस्त नहीं बन सकता अशांति का मूल --- संग्रह अस्पृश्यता मानवता का कलंक है अहिंसक और कायरता अहिंसा अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत अहिंसा और जनतंत्र' अहिंसा और जीवन के पहलू अहिंसा और जैन समाज अहिंसा और विश्वशांति अहिंसा और शाश्वत धर्म १. ३१-१०-६७ अहमदाबाद Jain Education International २. ४-८-६८ मद्रास २९५ For Private & Personal Use Only २३ अग०७० २३ सित० ७३ १४ अप्रैल ६८ अक्टू ० ६९ ६ अक्टू० ६८ २६ मई ६३ २० दिस० ७० १२ जुलाई ५९ ११ जन ७० १० अक्टू० ६५ २७ जून ७१ २८ नव० ७१ २३ जन० ७२ २ अग० ७० ४ मई ६९ मई ४९ १२ सित० ६५ १४ दिस० ६९ ३१ अक्टू० ६५ १७ जन० ६५ / ८ सित० ६८ १ सित० ७४ २६ अप्रैल ७० वि० २० सित० ५१ ४ अग० ५७ दिस० ४८ ९ दिस० ८४ २४ जून ८४ ४ अग० ६८ ९ जुलाई ६१ ६ जुलाई ५८ मई ६९ www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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