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________________ 'परिशिष्ट १ २६५ २३० و مہر و १३२ २०१ १८० مہ و سل ११२ १२१/२७ ३४ ३ विघटन के हेतु अण गति विचार-क्रांति के बढ़ते चरण प्रवचन ४ विचार भेद और समन्वय बूंद-बूंद १ विचार-समीक्षा धर्म एक विजय और पराजय के बाद की विजय मुखड़ा विजेता कौन ? मंजिल १ विज्ञान और अध्यात्म अणु गति विज्ञान और शास्त्र अणु गति विज्ञान के सही संयोजन की आवश्यकता अणु संदर्भ विदाई संदेश आ. तु./सूरज विद्या किसलिए? प्रगति की विद्या की निष्पत्ति : विनय और प्रामाणिकता के संस्कार आलोक में विद्या जीवन-निर्माण की दिशा बने ज्योति के विद्याध्ययन का लक्ष्य नवनिर्माण विद्याध्ययन क्यों और कैसे ? आगे विद्यार्जन का ध्येय प्रवचन ९ विद्यार्जन की सार्थकता सूरज विद्यार्थियों का निर्माण ही राष्ट्र निर्माण है संभल विद्यार्थियों के रचनात्मक मस्तिष्क का निर्माण । अणु संदर्भ विद्यार्थियों से जन-जन विद्यार्थी और जीवन-निर्माण की दिशा आगे विद्यार्थी और नैतिकता भोर विद्यार्थी का कर्तव्य संभल विद्यार्थी का चरित्र प्रवचन ९ विद्यार्थी का जीवन सूरज विद्यार्थी कौन होता है ? प्रवचन ९ 'विद्यार्थी जीवन : एक समस्या, एक समाधान धर्म एक 'विद्यार्थी जीवन और संयम घर विद्यार्थी जीवन का महत्त्व नवनिर्माण विद्यार्थी जीवन : जीवन-निर्माण का काल भोर विद्यार्थी दृढ़प्रतिज्ञ बने प्रवचन ११ UM USO ११७ ३३ ८१ १३२ ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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