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________________ २२२ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण २१ ३७/३७ १३४ १२२ २३३ १९५/१९८ जरूरतों में बदलाव जहां अनैतिकता, वहां तनाव जहां उत्तराधिकार लिया नहीं, दिया जाता है जहां माताएं संस्कारी होती हैं जहां विरोध है, वहां प्रगति है जहां से सब स्वर लौट भाते हैं जागरण का शंखनाद जागरण का संदेश जागरण की दिशा मे बढ़ने का संकेत जागरण के बाद प्रमाद क्यों ? जागरण क्या है ? जागरण विवेक का जागरण ही जीवन है जागरूकता से बढ़ती है संभावनाएं जागृत जीवन जागृत धर्म जागृति का मंत्र जागृति कैसे और क्यों ? जागो ! निद्रा त्यागो !! जाति न पूछो साधु की जातिवाद अतात्त्विक है जातिवाद के समर्थकों से जापान और भारत का अंतर जिज्ञासा और जिगीषु जितनी सादगी : उतना सुख जितने प्रश्न : उतने उत्तर जीना ही नहीं, मरना भी एक कला है जीने का दर्शन जीने की कला बैसाखियां उद्बो/समता बीती ताहि प्रवचन ९ संदेश लघुता सूरज समता/उद्बो दोनों लघुता खोए क्या धर्म उद्बो/समता लघुता आगे सोचो! ३ वि वीथी/दोनों आगे जागो! प्रवचन ११ प्रवचन ११ जन जन १७० १०८ १२१ १६३/१६१ १७३ १८३ २७० २१६ १२६ ६४ कुहासे घर दोनों कुहासे दीया खोए सूरज /समता उद्बो सूरज जब जागे प्रवचन ४ जीने की कला : मरने की कला जीव अजीव का द्विवेणी संगम जीव और अजीव ५७/१३२ १३३ १८७ १२६ . १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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