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________________ २१४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण २२४ १४१ २१३ १२४ ४३ ९२ १८० ७९ कर्त्तव्य की पूर्ति के लिए नया मोड़ कर्तव्य बोध कर्तव्य बोध जागे कर्तृत्व अपना कर्म एवं उनके प्रतिफल कर्म और भाव कर्म कर्ता का अनुगामी कर्म को प्रभावहीन बनाया जा सकता है कर्मणा जैन बनें कर्म-बध का कारण कर्म-बंधन का हेतु : राग-द्वेष कर्म-बंधन के स्थान कर्म मोचन : संसार मोचन कर्म व पुरुषार्थ की सापेक्षता कर्मवाद कर्मवाद का सिद्धांत कर्मवाद के सूक्ष्म तत्त्व कर्म विच्छेद कैसे होता है ? कर्म सिद्धांत कर्मों की मार कला और संस्कृति का सृजन कलामय जीवन और मौत कल्पना का महल कल्याण अपना भी औरों का भी कल्याण का रास्ता कल्याणकारी भविष्य का निर्माण कल्याण का सूत्र कवि और काव्य का आदर्श कवि का दायित्व कविता कैसी हो ? कवि से कषायमुक्ति बिना शांति संभव नहीं कषायमुक्ति : किल मुक्तिरेव नैतिक नैतिकता के प्रवचन १० कुहासे सोचो ! ३ प्रवचन ८ बूंद-बूंद १ जब जागे मंजिल २ सोचो ! ३ प्रवचन ५ मंजिल २ सोचो !३ प्रवचन ४ मंजिल १ प्रवचन ११ भोर प्रवचन ४ भगवान् प्रवचन ४ कुहासे सोचो ! ३ सूरज प्रवचन ९ समता मनहंसा प्रवचन ११ आ. तु प्रवचन ९ घर १३८ १२२ १०८ १०८ S M X २९ २२८ ८८ १८३ २३७ १०७ २८ जन-जन जागो ! संभल १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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