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________________ ९६ साधना का प्रभाव' परमार्थ की चेतना साधु जनता को प्रिय क्यों ? साधु संस्था की उपयोगिता साधु की पहचान भिक्षु कौन ? ४ संतों का स्वागत क्यों ?" संतों के स्वागत की स्वस्थ परम्परा' पाप श्रमण कौन ? कसौटियां और कोटियां मुनित्व के मानक ७ जो सब कुछ सह लेता है त्याग और भोग की सत्ता ' पंच परमेष्ठी णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं आचार्यपद की अर्हताएं आचार्य की संपदाएं ९ संघ में आचार्य का स्थान आचार्य महान उपकारी होते हैं" आचार्यों का अतिशेष " णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं एसो पंच णमुक्का चत्तारि सरणं पवज्जामि मंगल क्या है ? १२ मंगल और शरण ३ १. १-४-६६ गंगानगर । २. ७-९-७७ लाडनूं । ३. २६-३-५६ खाटे (छोटी) । ४. ७-२-५७ सरदारशहर । ५. २२-२-५३ लूणकरणसर । ६. ५-७-५४ बम्बई ( सिक्कानगर ) । ७. ८-१-७९ श्रीडूंगरगढ़ । Jain Education International आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण आगे कुहासे प्रवचन ४ अणु गति संभल घर प्रवचन ९ भोर मुखड़ा मुखड़ा प्रवचन १० खो जागो ! मनहंसा मनहंसा मनहंसा दीया मनहंसा जागो ! जागो ! जागो ! मनहंसा मनहंसा मनहंसा मनहंसा संभल संभल ८. ८-१०-६५ दिल्ली । ९. २६-१२-६५ दिल्ली । १०. २०-११-६५ दिल्ली । ११. २७-१२-६५ भिवानी । १२. २२-१-५६ जालमपुरा । १३. १२-४-५६ सुजानगढ़ । For Private & Personal Use Only १४४ ७४ १२४ २०० ८७. १२ १८ ५९. २९ २७ १०८ ४२ ७७ १ ७ ११ ११८ १७४ २२१. १२३ २३५ १६ २० २५ २९ ३५ १९६. www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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