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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण २२६ २७८ १८३ १८८ १४३ १४४ २१ प्रवचन ११ संदेश आगे मुखड़ा मुखड़ा मुखड़ा प्रवचन ५ सफर मुखड़ा सोचो! ३ अतीत का घर मंजिल १ अतीत का मंजिल १ दायित्व का वि० दीर्घा ज्योति से कुहासे जब जागे प्रवचन १० प्रवचन १० कुहासे २६९ तेरापंथ की मंडनात्मक नीति' जहां विरोध है, वहां प्रगति है संघ का गौरव श्रम और सेवा का मूल्यांकन संघ में कौन रहे ? भेद में अभेद की खोज वैयक्तिक और सामूहिक साधना का मूल्य रचनात्मक प्रवृत्तियां संगठन के तत्त्व नई पोढ़ी और धार्मिक संस्कार शरीर को छोड़ दें, धर्मशासन को नहीं स्थिरवास क्यों ? एक स्वस्थ पद्धति : चिन्तन और निर्णय की दायित्वबोध के सूत्र संघ और हमारा दायित्व संघ, संघपति और युवा दायित्व श्रावक अपने दायित्व को समझे युगबोध : दिशाबोध : दायित्वबोध सर्वोत्तम क्षण यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा संस्कार से जैन बनें" कर्तव्यबोध जागे अमृत संसद सीमा में असीमता पुण्य स्मृति संस्कृत भाषा का विकास ७७ २१२ ४९ १३६ १५३ १३८ १९३ ११४ ७९ २३५ कुहासे १४२ प्रवचन ११ मंजिल १ १. १५-५-५४ अहमदाबाद । ७. २७-५-७७ लाडनूं । २. ३०-५-६६ सरदारशहर । ८. २२-५-७३ दूधालेश्वर महादेव । ३. २७-१२-७७ जैन विश्व भारती, ९ १६-२-७५ डूंगरगढ़ । ४. १३-१-७८ जैन विश्व भारती, १०.५-२-७९ राजलदेसर । ५. लाडनूं, स्थिरवास शताब्दी महोत्सव ११. १२-९-७८ गंगाशहर । ६. १३-१-७७ राजलदेसर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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