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________________ ४० अनुत्तर ज्ञान और दर्शन' बंधन और मुक्ति परीक्षा रत्नत्रयी की मुक्तिमार्ग * आदर्श, पथदर्शक और पथ' संसार और मोक्ष' कषाय मुक्तिः किल मुक्तिरेव प्रायश्चित्त व्रत और प्रायश्चित्त' प्रायश्चित्त : दोष विशुद्धि का उपाय' विशुद्धि का उपाय : प्रायश्चित्त" ११ .१२ प्रायश्चित्त का महत्त्व अनुशासन और प्रायश्चित्त ‍ प्रायश्चित्त देने का अधिकारी आलोचना का अधिकारी " भूल और प्रायश्चित्त ५ सत्य सापेक्षता से होता है सत्य का बोध सत्य ही भगवान् है असार संसार में सार क्या है ? युद्ध का अवसर दुर्लभ है सत्य क्या है ? सत्य का उद्घाटन १. ३ ९ ६५ दिल्ली । २. लाडनूं ३. ७-५ -५३ बीकानेर । ७ Jain Education International 93 ४. ५-५-७६ छापर । ५. २६-४-६५ जयपुर । ६. २१-९-६५ दिल्ली । ७. १०-४-५६ सुजानगढ़ । ८. ११-१०-७६ सरदारशहर आ तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण बूंद बूंद २ घर प्रवचन ९ मुक्ति इसी बूंद बूंद १ जागो ! संभल मंजिल २ मंजिल १ मंजिल २ मंजिल १ बूंद बूंद मंजिल १ मंजिल १ मंजिल १ दीया राज/ वि. वीथी लघुता लघुता गृहस्थ / मुक्तिपथ गृहस्थ / मुक्तिपथ ९. १८-१०-७६ सरदारशहर । १०. २२-५-७८ लाडनूं । ११. १९ - ३-७७ लाडनूं । १२. १९-१०-६५ दिल्ली । १३. २१-३-७७ लाडनूं । १४. २९-६-७७ लाडनूं । १५. २४-६-७७ लाडनूं । For Private & Personal Use Only १४९ २७५ ९७ ३१ १५२ १६ १०३ ८७ २६ १५९ १२२ १२० १२४ २४६ २३९ १२९ १५५/९९ १५५ १६४ २८ / २६ ३० / २८ www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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