________________
२२८
आ तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
प्रवचन - पाथेय भाग १- ११
प्रवचन साहित्य जनमानस को नैतिकता एवं अध्यात्म की ओर प्रेरित करने का सफल उपक्रम है । आचार्य तुलसी के प्रवचन किसी पूर्वाग्रह या संकीर्णता से बंधे हुए नहीं होते हैं, अतः उनमें सत्यं शिवं सुन्दरं की समन्विति सहज ही हो जाती है। इन प्रवचनों में ऐसी शक्ति निहित है, जो मोहाविष्ट चेतना को जगाने में सक्षम है ।
3
आचार्य तुलसी के प्रवचन - साहित्य की एक लम्बी श्रृंखला जैन विश्व भारती लाडनूं ( राज ० ) से प्रकाशित हुई है, जो प्रवचन- पाथेय के नाम से संकलित है । महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी उनके प्रवचनों के बारे में अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए कहती हैं- "उनके प्रवचनों में एक ओर सत्य की गहराई रहती है तो दूसरी ओर व्यवहार का धरातल भी बहुत प्रशस्त रहता है । आचार्यश्री की बहुश्रुतता हर प्रवचन में झांकती है ।"
यह प्रवचन - साहित्य जीवन के विविध पहलुओं से सम्बन्धित समस्याओं को उठाता ही नहीं, बल्कि समाधान भी देता है । पहले उनके प्रवचनों का संकलन 'बूंद बूंद से घट भरे', भाग - १, २ 'मंजिल की ओर' भाग - १, २ 'सोचो समभो' भाग १ - ३ इन नामों से प्रकाशित हुआ था। प्रवचन साहित्य को एकरूपता देने के लिए इन्हें " प्रवचन - पाथेय" नाम से कई भागों में प्रकाशित किया गया, जिसकी सूची इस प्रकार है
प्रवचन - पाथेय भाग - १ प्रवचन - पाथेय भाग - २ प्रवचन - पाथेय भाग-३ प्रवचन - पाथेय भाग-४ प्रवचन - पाथेय भाग - ५
बूंद-बूंद से घट भरे भाग - १ बूंद-बूंद से घट भरे भाग - २ मंजिल की ओर भाग - १ सोचो ! समझो !! सोचो ! समझो !! सोचो ! समझो !! भाग-३
भाग - १ भाग- २
प्रवचन - पाथेय भाग-६ प्रवचन - पाथेय भाग - ७
मंजिल की ओर भाग - २
प्रवचन - पाथेय भाग-८
स्वतंत्र
प्रवचन - पाथेय भाग-९
प्रवचन डायरी भाग- १
स्वतंत्र
प्रवचन - पाथेय भाग- १० प्रवचन - पाथेय भाग- ११
प्रवचन डायरी भाग- १
आचार्यश्री ने इन प्रवचनों में उन अनछुए पहलुओं का स्पर्श किया है, जिनका सम्बन्ध आज समग्र विश्व में व्याप्त व्यक्तिगत, पारिवारिक, धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं से है । लेखक की पैनी दृष्टि से शायद ही कोई मुद्दा छूटा हो, जिन पर उनके विचार प्रवचन के माध्यम से हमारे सामने न आए हों। किसी भी विषय का विश्लेषण करते समय वे जहां अतीत में खो जाते हैं, वहीं उन्हें वर्तमान का भी भान रहता है, साथ ही भविष्य के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org