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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन प्रदत्त प्रस्तुत कृति में अणुव्रत आंदोलन के वार्षिक अधिवेशनों पर मंगल प्रवचन एवं समापन समारोह के उद्बोधन संकलित हैं। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे प्रवचनों का संकलन भी है, जो अणुव्रत के विशेष समारोहों के अवसर पर दिये गए हैं । इस छोटी-सी कृति में आंदोलन के इतिहास, रूपरेखा, उद्देश्य तथा उसकी निष्पत्तियों का ज्ञान हो जाता है । प्राचीन होने पर भी यह पुस्तक भाषा, भाव एवं शैली की दृष्टि से उत्कृष्ट कोटि की है । इस कृति के सभी आलेख आज की विषम परिस्थितियों में भी आशा, विश्वास, रचनात्मकता एवं मानवता का संदेश देते हैं । जो व्यक्ति प्रतिदिन हजारों पृष्ठ स्याही से रंग देते हैं, जिनमें ढूंढने पर भी जीवन-तत्त्व नहीं मिलता, उन लोगों के लिए आचार्य तुलसी की यह कृति प्रेरणा - दीप का कार्य करेगी तथा जीवन की उर्वर भूमि में आध्यात्मिक वर्षा कर चरित्र की पौध लहलहा सकेगी । २२५ प्रगति की पगडंडियां लगभग ३७ साल पूर्व दिए गए प्रवचनों का एक लघु संस्करण है .. 'प्रगति की पगडंडियां' । इस पुस्तिका के १३ आलेखों में नैतिकता, शांति, अनुशासन और अहिंसा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है, साथ ही इन्हें जीवन में उतारने की प्रेरणा भी है । इसमें औपदेशिक भाषा का प्रयोग अधिक है, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि बुद्धितत्त्व और हृदयतत्त्व दोनों का समन्वित रूप प्रस्तुत हुआ है । प्रज्ञापर्व आचार्य तुलसी प्रायोगिक जीवन जीने में विश्वास करते हैं । उनके जीवन का एक बहुत बड़ा सामूहिक प्रयोग का वर्ष था -- - 'योगक्षेमवर्ष' जिसे 'प्रज्ञापर्व' के रूप में मनाया गया । इस वर्ष का प्रयोजन था - मौलिकता की सुरक्षा के साथ धर्मसंघ को आधुनिकता के साथ जोड़ना तथा आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण करना । इस पूरे वर्ष में सैकड़ों साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं को प्रशिक्षण दिया गया । प्रशिक्षण देने की दृष्टि से प्रशिक्षुओं को अनेक वर्गों में बांटा गया । जैसे—- स्नातक वर्ग, प्रबुद्ध वर्ग, तत्त्वज्ञ वर्ग तथा बोधार्थी वर्ग आदि । पूरे वर्ष में साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक प्रशिक्षण का क्रम भी चला, जिसमें अनेक कार्यकर्ताओं तथा प्रेक्षाध्यान के प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण का कार्यक्रम भी रखा गया । इस वर्ष का प्रतीक था 'पण्णा समिक्खए' - प्रज्ञा से देखो । साप्ताहिक बुलेटिन विज्ञप्ति में 'पण्णा समिक्खए' स्तम्भ के अन्तर्गत आचार्य तुलसी के विशेष संदेश एवं विचार प्रकाशित होते रहे। उन्हीं विचारों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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