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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन २०३ अध्ययन प्रस्तुत करती है। समीक्ष्य ग्रन्थ में प्रायः प्रश्न पाश्चात्य दर्शन से प्रभावित हैं पर आचार्य तुलसी ने उनमें भारतीय दर्शन के अनुसार सामञ्जस्य बिठाने का प्रयत्न किया है तथा कहीं-कहीं उन विचारों के प्रति विरोध भी प्रकट किया है। फिर भी सम्पूर्ण पुस्तक में उत्तर देते हुए लेखक ने अनैकान्तिक दृष्टि को नहीं छोड़ा है। सामान्यतः आचार्य तुलसी सहज, सुबोध एवं सरल शैली में बोलते अथवा लिखते हैं पर इस पुस्तक में नैतिकता, आचारशास्त्र, पाश्चात्य-दर्शन तथा अणुव्रत के विविध पक्षों का अत्यन्त गूढ़ एवं गंभीर विवेचन हुआ है। नैतिकता की नई व्याख्या एवं परिकल्पना जिस रूप से इस पुस्तक में उकेरी गई है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। प्रारम्भिक ४२ लेखों में प्रश्नोत्तरों के माध्यम से भारतीय एवं पाश्चात्य आचार-विज्ञान का विश्लेषण है तथा द्वितीय खण्ड 'जीवन मूल्यों की तलाश' में २४ निबंधों के माध्यम से अणुव्रत एवं उससे सम्बन्धित नैतिक मूल्यों का विवेचन है। इस प्रकार अणुव्रत-दर्शन को तुलनात्मक रूप से गंभीर एवं प्राञ्जल भाषा में प्रस्तुत करने का सफल एवं स्तुत्य प्रयास यहां हुआ है। अमत-संदेश आचार्य तुलसी के आचार्यकाल के ५० वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में समाज ने अमृत महोत्सव की आयोजना कर उनका अभिनंदन किया क्योंकि आचार्य तुलसी ने स्वयं विष पीकर भी देश, समाज और राष्ट्र को अमृत ही बांटा है। आलोच्य कृति का प्रारम्भ अमृत-संदेश से होता है, जो लेखक ने अपने जन्मदिन पर सम्पूर्ण देश की जनता के नाम दिया था । पुस्तक में अमृत वर्ष के अवसर पर दिए गए विशेष पाथेय, दिशाबोध एवं संदेश समाविष्ट हैं । इन विशिष्ट आलेखों में मानवीय मूल्यों को उजागर करने के साथ-साथ सांप्रदायिकता, कट्टरता एवं जातिवाद की जड़ों को भी काटने का सफल उपक्रम हुआ है। ___'एक मर्मान्तक पीड़ा : दहेज' 'व्यवसाय जगत् की बीमारी : मिलावट' आदि लेखों में रचनात्मक एवं सृजनात्मक वातावरण निर्मित करने का सफल अभियान छेड़ा गया है । 'समाधान का मार्ग हिंसा नहीं' आलेख में लेखक ने लोंगोवालजी से मिलन के प्रसंग को अभिव्यक्ति दी है । मजहब के नाम पर विकृत साहित्य लिखने वालों के सामने यह कृति एक नया आदर्श प्रस्तुत करती है तथा समाज में व्याप्त विकृतियों को धूं-धूकर जलाने की शक्ति रखती है। विश्व के क्षितिज पर मानवधर्म के रूप में अणुव्रत आंदोलन का प्रतिष्ठापन करके आचार्य तुलसी ने अध्यात्म का नया सूर्य उगाया है। अणुव्रत आंदोलन के विविध रूपों को स्पष्ट करने हेतु दिए गए दिशाबोधों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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