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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
चलेगा, उन्हें दुर्गा भी बनना होगा। दुर्गा बनने से मेरा मतलब हिंसा या आतंक फैलाने से नहीं, शक्ति को संजोकर रखने से है ।" ० नारी अबला नहीं, सबला बने । बोझ नहीं, शक्ति बने। कलहकारिणी
नहीं, कल्याणी बने। • आज का क्षण महिलाओं के हाथ में है। इस समय भी अगर
महिलाएं सोती रहीं, घड़ी का अलार्म सुनकर भी प्रमाद करती रहीं तो भी सूरज को तो उदित होना ही है। वह उगेगा और अपना
आलोक बिखेरेगा। • स्त्री में सृजन की अद्भुत क्षमता है। उस क्षमता का उपयोग विश्वशांति या समस्याओं के समाधान की दिशा में किया जाए तो वह सही अर्थ में विश्व की निर्मात्री और संरक्षिका होने का सार्थक गौरव प्राप्त कर सकती है।"२
आचार्य तुलसी ने नारी जाति को उसकी अपनी विशेषताओं से ही नहीं, कमजोरियों से भी अवगत कराया है, जिससे कि उसका सर्वांगीण विकास हो सके । महिला-अधिवेशनों को संबोधित करते हुए नारी समाज को दिशादर्शन देते हुए वे अनेक बार कह चुके हैं--"मैं बहिनों को सुझाना चाहता हूं कि यदि उन्हें संघर्ष ही करना है तो वे अपनी दुर्बलताओं के साथ संघर्ष करें । उनके साहित्य में नारी जाति से जुड़ी कुछ अर्थहीन रूढियों एवं दुर्बलताओं का खुलकर विवेचन ही नहीं, उन पर प्रहार भी हुआ है तथा उसकी गिरफ्त से नारी-समाज कैसे बचे, इसका प्रेरक संदेश भी है।
सौन्दर्य-सामग्री और फैशन की अंधी दौड़ में नारी ने अपने आचारविचार एवं संस्कृति को भी ताक पर रख दिया है। इस संदर्भ में उनके निम्न उद्धरण नारी जाति को कुछ सोचने, समझने एवं बदलने की प्रेरणा देते हैं० मातृत्व के महान् गौरव से महनीय, कोमलता, दयालुता आदि
अनेक गुणों की स्वामिनी स्त्री पता नहीं भीतर के किस कोने से खाली है, जिसे भरने के लिए उसे ऊपर की टिपटॉप से गुजरना पड़ता है। मैं मानता हूं कि फैशनपरस्ती, दिखावा और विलासिता आदि दुर्गुण स्त्री समाज के अन्तर् सौन्दर्य को ढकने वाले आवरण
० अपने कृत्रिम सौन्दर्य को निखारने के लिए पशु-पक्षियों की निर्मम
१. दोनों हाथ : एक साथ, पृ० २१ । २. एक बूंद : एक सागर, पृ० १९१४ । ३. वही, पृ० १६१३ ।
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