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उन्नीस
अधिक विकास देखना चाहते हैं । इसीलिए इस विकास यात्रा के हर पड़ाव पर वे अपनी साहित्यिक प्रतिभाओं को अग्रिम सफलता के लिए प्रेरणा देते रहते हैं | अपने अनुयायी वर्ग को अपने मन की बात कहते हुए वे कहते हैं"अनेक विधाओं में साहित्य का निर्माण हुआ है, हो रहा है और विद्वज्जगत् में उसका उचित समादर भी हो रहा है, पर मेरी स्वप्न यात्रा का आखिरी पड़ाव यही नहीं है । मैं बहुत दूर तक देख रहा हूं और अपने धर्मसंघ को वहां तक पहुंचाना चाहता हूं । क्योंकि अब तक जितना साहित्य सामने आया है, उसमें मौलिकता अधिक नहीं है ।" पर आचार्यश्री की अभीप्सा के अनुरूप मौलिक साहित्य का सृजन सहज कहां ? इस बात को स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि 'आचार्य तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण' कोई मौलिक कृति नहीं है, मात्र संयोजन है ।
वर्गीकरण की प्रक्रिया
किसी भी लेखक के लेखों का विषय- वर्गीकरण कठिन कार्य है । उसमें भी समाज सुधारक धर्मनेता के प्रवचनों का विषय वर्गीकरण तो और भी अधिक दुष्कर कार्य है । क्योंकि इस कोटि का कोई भी व्यक्ति देश, काल, परिषद् एवं परिस्थिति के अनुकूल अपना प्रवचन देता है । उनमें क्रमबद्धता एवं एकसूत्रता की कल्पना ही नहीं की जा सकती । इस परिप्रेक्ष्य से आचार्य तुलसी के प्रवचन काफी विषयबद्ध एवं क्रमबद्ध कहे जा सकते हैं ।
विषय- वर्गीकरण : एक अनुचितन
विषय- वर्गीकरण के समय मैंने किन-किन बातों को अपनी दृष्टि के मध्य में रखा, उनका संक्षिप्त आकलन यहां प्रस्तुत कर रही हैं, जिससे पाठकों को कहीं विसंगति प्रतीत न हो ।
वर्गीकरण में मैंने लेखों को बहुत ज्यादा विषयों में नहीं बांटा है । और ऐसा मैंने सलक्ष्य किया है । यदि पर्यायवाची या उनके निकट के विषयों
अलग-अलग विभाजन होता तो विषय बिखर जाते और शोधार्थी को भी असुविधा रहती । अतः मुख्य शीर्षक २१ ही रखे हैं । उनके अन्तर्गत कुछ उपशीर्षक भी हैं । जैसे संग्रह और विसर्जन से संबंधित लेखों को अपरिग्रह में ही अन्तर्गभित कर दिया है । परिग्रह का मूल संग्रह वृत्ति है तथा अपरिग्रह का मूल विसर्जन, क्योंकि अपरिग्रह का विकास हुए बिना न संग्रह छूट सकता है और न विसर्जन की भावना का विकास हो सकता है ।
'अनुभव के स्वर' वर्गीकरण के अन्तर्गत आचार्य तुलसी की व्यक्तिगत साधना, नेतृत्व तथा यात्रा आदि से संबंधित अनुभवपरक लेखों एवं प्रवचनों का समाहार किया गया है । इसके अतिरिक्त उनके जीवन से संबंधित विशेष अवसर जैसे पट्टोत्सव ( आचार्य पदारोहण दिवस),
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