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________________ समाज-दर्शन साहित्य समाज की चेतना में सांस लेता है, अतः साहित्यकार समाज की चेतना को तो प्रतिध्वनित करता ही है, साथ ही साथ वह अपने मौलिक एवं क्रांत चिन्तन से समाज को नया विचार एवं नया दिशादर्शन भी देता है । डॉ० वी० डी० वैश्य कहते हैं "समाज का यथार्थ ऊपर-ऊपर नहीं तैरता, उसकी कई परतें होती हैं । साहित्यकार की सूक्ष्म दृष्टि ही परतों को भेदकर उस यथार्थ को जनता के समक्ष प्रस्तुत करती है । " प्राचीन मनीषियों ने भी साहित्य और समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध माना है । नरेन्द्र कोहली कहते हैं -- “यदि साहित्य में दु:ख, वेदना या निराशा होगी तो समाज में भी निराशा एवं दुःख की वृद्धि होगी । साहित्य में उच्च गुणों की प्रशंसा होगी तो समाज में भी उसका सम्मान बढ़ेगा । साहित्य समाज से कहीं अधिक शक्तिशाली है क्योंकि समाज का निर्माण साहित्यकार के हाथों होता है । अतः साहित्यकार समाज का महत्त्वपूर्ण सदस्य है ।" समाज धनी - निर्धन, पूंजीपति मजदूर, शिक्षित-अशिक्षित आदि अनेक वर्गों में बंटा हुआ है । इन दोनों वर्गों में सन्तुलन का कार्य साहित्यकार ही कर सकता है । प्रेमचन्द इस बात को स्वीकार करते हैं कि समाज स्वयं नहीं चल सकता । उसका नियन्त्रण करने वाली सदा ही कोई अन्य शक्ति रही है । उसमें धर्माचार्य और साहित्यकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं । आचार्य तुलसी धर्माचार्य के साथ साहित्यकार भी हैं अतः उनके साथ सहज ही मणिकांचन योग हो गया है । जिस प्रकार कबीर ने जो कुछ लिखा वह किताबी ज्ञान से नहीं, अपितु आंखों देखी बात लिखी, वैसे ही आचार्य तुलसी ने सामाजिक चेतना को अपनी अनुभव की आंखों से देखकर उसे संवारने का प्रयत्न किया है। उनके समाजदर्शन की विशेषता है कि उन्होंने सब कुछ स्वीकारा नहीं है, गलत मान्यताओं को फटकार एवं चुनौती भी दी है तथा उसके स्थान पर नए मूल्य निर्माण का संदेश दिया है । धर्माचार्य होने के नाते वे स्पष्ट शब्दों में अपने सामाजिक दायित्व को स्वीकारते हैं---" धर्मगुरुओं का काम सामायिक, ध्यान, तपस्या, कीर्तन १. प्रेमचन्द, पृ० १७२, १९० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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