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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन हित का चश्मा चढ़ाकर चारों ओर देखने वाले व्यक्ति राष्ट्रीय चरित्र से कोसों दूर हैं । ऐसे लोग ही देश की भावात्मक एकता में दरार डालते हैं।
राष्ट्रीय एकता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए वे जनता को प्रतिबोध देते हुए कहते हैं- "राष्ट्रीय एकता की शुभ शुरुआत हर व्यक्ति अपने से करे, यह अपेक्षित है । यदि राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक यह संकल्प कर ले कि वह अपने किसी भी आचरण और व्यवहार से राष्ट्रीय एकता को नुकसान नहीं पहुंचाएगा तो यह उसका इस क्षेत्र में बहुत बड़ा सहयोग होगा। साथ ही वे कुछ आचरणीय बिंदु एवं विकल्प भी प्रस्तुत करते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता में बाधक तत्त्वों को अलग कर एकता एवं अखंडता को सुदृढ़ किया जा सके"१. भारतीय जनता के बड़े भाग में राष्ट्रीयता की कमी महसूस हो रही
है । राष्ट्रीयता के बिना राष्ट्रीय एकता की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए सर्वप्रथम राष्ट्रीय चेतना को जगाने की दिशा में
शक्ति का नियोजन हो। २. राष्ट्रीयता के प्रशिक्षण शिविरों की आयोजना तथा शिक्षा के साथ
राष्ट्रीयता के प्रशिक्षण की व्यवस्था हो। ३. लोकतंत्र में सबको समान अवसर और अधिकार प्राप्त हैं। इस स्थिति में बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक जैसी विभक्त करने वाली व्यवस्थाओं पर पुनर्विचार किया जाए। ४. जातीयता तथा साम्प्रदायिकता को राष्ट्रीयता के साथ न जोड़ा
जाए। ५. केन्द्रित अर्थ-व्यवस्था और केन्द्रित शासन-व्यवस्था अव्यवस्था और
संघर्ष को जन्म देती हैं। इसलिए उनके विकेन्द्रीकरण पर चिन्तन किया जाए।"२
इन विकल्पों के अतिरिक्त वे तीन मुख्य बिंदुओं पर सबका ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं- "मैं मानता हूं अध्यात्म का अभाव, अर्थ की प्रधानता और मौलिक चिन्तन की कमी --- इन तीन बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाए तो देश की अखंडता और स्वतंत्रता सार्थक हो सकती है तथा देश के भविष्य को स्थिरता दी जा सकती है।'
राष्ट्र की एकता में भेद डालने वाली स्थितियों को समाहित करने के लिए आचार्य तुलसी राजनेताओं को आह्वान करते हुए कहते हैं ---"कानून के
१. विज्ञप्ति सं० ९८८1 २. बैसाखियां विश्वास की, पृ० १०५,१०६ । ३. जीवन की सार्थक दिशाएं, पृ० ४६ ।
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