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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
१४१ कि आज राष्ट्र राजनैतिक दासता से मुक्त हो गया है पर उसे मानसिक दासता से मुक्त करना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए हम अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से देश में स्वस्थ वातावरण बनाना चाहते हैं। अपनी बात जारी रखते हुए आचार्य तुलसी ने कहा-.-."मैं राष्ट्र का वास्तविक विकास बड़ेबड़े बांधों, पुलों और सड़कों में नहीं देखता। उसका सच्चा विकास उसमें रहने वाले मानवों की चरित्रशीलता, सदाचरण, सचाई और ईमानदारी में मानता हूं। मेरा मानना है कि नैतिकता के बिना राष्ट्रीय एकता परिपुष्ट नहीं हो सकती। अतः नैतिक आंदोलन अणुव्रत के कार्यक्रम की अवगति देना ही हमारे मिलन का मुख्य उद्देश्य है"। पंडित नेहरू आचार्य तुलसी के इस उत्तर से अवाक् तो थे ही, साथ ही श्रद्धा से नत भी हो गए। तभी से आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से मानवता की सेवा का व्रत ले लिया। आचार्य तुलसी अनेक बार यह भविष्यवाणी कर चुके हैं.-"जब कभी भारत को स्वर्णिम भारत, अच्छा भारत या रामराज्य का भारत बनना है, अणुव्रती भारत बनकर ही वह इस आकांक्षा को पूरा कर सकता है ।'
आचार्य तुलसी की स्पष्ट अवधारणा है कि यदि व्यक्तितंत्र, समाजतंत्र या राजतंत्र नैतिक मूल्यों को उपेक्षित करके चलता है तो उसका सर्वांगीण विकास होना असंभव है। कभी-कभी तो वे यहां तक कह देते हैं- "मेरी दृष्टि में नैतिकता के अतिरिक्त राष्ट्र की दूसरी आत्मा संभव नहीं है । विशेष अवसरों पर वे अनेक बार यह संकल्प व्यक्त कर चुके हैं"मैं देश में फैले हुए भ्रष्टाचार और अनैतिकता को देखकर चिंतित हैं । नैतिकता की लौ किसी न किसी रूप में जलती रहे, मेरा प्रयास इतना ही है।" उनका विश्वास है कि नैतिक आंदोलनों के माध्यम से असत्य से जर्जरित युग में भी सत्यनिष्ठ हरिश्चन्द्र को खड़ा किया जा सकता है, जो जीवन की सत्यमयी ज्योति से एक अभिनव आलोक प्रस्फुटित कर सके।" भारतीय संस्कृति
आचार्य तुलसी का मानना है कि जिस राष्ट्र ने अपनी संस्कृति को भुला दिया, वह राष्ट्र वास्तव में एक जीवित और जागृत राष्ट्र नहीं हो सकता । वे भारतीय संस्कृति की गरिमा से अभिभूत हैं अतः देशवासियो को अनेक बार भारत के विराट् सांस्कृतिक मूल्यों की अवगति देते रहते हैं। उनकी निम्न पंक्तियां हिंदू संस्कृति के प्राचीन गौरव को उजागर करने वाली हैं - "जो लोग पदार्थ-विकास में विश्वास करते हैं, वे असहिष्णु हो सकते हैं। जो लोग शस्त्रशक्ति में विश्वास करते हैं, वे निरपेक्ष हो सकते हैं ।
१. मनहंसा मोती चुगे, पृ० ८७ । २,३. एक बूंद : एक सागर, पृ० १७०७, १७३१ ।
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