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सोलह
और सभी देश अणुबम बनाने की होड़ करने लगे तब आचार्यश्री ने आदेश दिया कि अणुबम नहीं, किंतु अणुव्रत आवश्यक है । यह उनकी राजनैतिक सूझ है, जो अपने आंदोलन में साम्प्रत राजनीति से लाभ कैसे उठाया जाए, इस बात की पूरी प्रतीति कराती है । पूज्य आचार्यश्री के लेखों का वर्गीकरण करके समणी कुसुमप्रज्ञा ने अप्रतिम कार्य किया है । वाचकों एवं शोध - विद्यार्थियों के लिए यह सामग्री अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी, इसमें संदेह नहीं है । इस ग्रंथ से पूज्य आचार्य श्री के साहित्य का सामान्य परिचय तो मिलेगा ही, उपरांत उनके विराट् साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचय भी प्रस्तुत पुस्तक से होगा । इसके लिए समणी कुसुमप्रज्ञा बधाई की पात्र हैं, वंदनीय हैं । किंतु एक बात मैं उनसे कहना चाहता हूं कि गांधीजी के लेखों का जिस प्रकार संग्रह हुआ है, वैसा संग्रह करना भी आवश्यक कार्य है। आशा करता हूं कि समणीजी इस कार्य को पूरा करके इस महत् कार्य में लग जाएंगी ।
अहमदाबाद
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- दलसुख मालवणिया
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