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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन उनकी इस दृढ़ता और मजबूती को देखकर आग लगाने वालों ने भी अपने मन में लज्जा और कायरता का अनुभव किया ।
इस विषम एवं हिंसक वातावरण में भी वे लोगों को ओजस्वी स्वरों में कहते रहे .--"आज मैं इस अवसर पर अपने शुभचिन्तकों को पूर्णरूप से संयमित रहने का निर्देश देता हूं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे किसी भी स्थिति में अहिंसा को नहीं भूलेंगे। हमारी विजय शांति में है। शांति नहीं थकती, थकता है विरोध ।" इस घटना से उनकी अहिंसा के प्रति गहरी निष्ठा और शांतिप्रियता की स्पष्ट झलक मिलती है ।। उदार दृष्टिकोण
- यह निर्विवाद सत्य है कि उदार व्यक्ति ही अहिंसा का पालन कर सकता है। बिना उदारता के व्यक्ति विपक्ष को सह नहीं सकता। आचार्य तुलसी उदारता की प्रतिमूर्ति हैं। इसका ज्वलन्त निदर्शन है- मेवाड़ और कलकत्ता का घटना प्रसंग । कानोड़ गांव से विहार कर आचार्य वर आगे पधार रहे थे। उनके साथ में सैकड़ों लोग नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे । आचार्यवर को ज्ञात हुआ कि जुलूस जिस मार्ग से आगे बढ़ रहा है, उस मार्ग में अन्य मुनियों का व्याख्यान हो रहा है। आचार्य तुलसी दो क्षण रुके और निर्देश की भाषा में श्रावकों से कहा--"नारे बंद कर दिए जाएं । श्रद्धालुओं ने प्रश्न उपस्थित किया-हम किसी को बाधा नहीं पहुंचाना चाहते पर अपने मन के उत्साह को कैसे रोकें ? सदा से ही ऐसा होता रहा है । फिर आज यह नयी बात क्यों उठी ? आचार्यवर ने उनके मानस को समाहित करते हुए कहा--"आगे मुनियों का प्रवचन हो रहा है। नारे लगाने से श्रोताओं को सुनने में बाधा पहुंचेगी ।" मनोवैज्ञानिक ढंग से अपनी बात को समझाते हुए आचार्यश्री ने कहा -- "तुम्हारी धर्मसभा में साधु-साध्वियों का या मेरा प्रवचन होता है, उस समय दूसरे लोग नारे लगाते हुए वहां से गुजरें तो तुम्हें कैसा लगेगा ?" आचार्यश्री की यह बात उनके अंतःकरण को छू गयी और सभी अनुयायी शांतभाव से आगे बढ़ने लगे । शांत जुलूस को देखकर दर्शक तो आश्चर्यचकित हुए ही, दूसरे संप्रदाय के लोगों पर भी इतना गहरा असर हुआ कि वे सहयोग कि भावना प्रदर्शित करने लगे । यह समन्वय एवं सह-अस्तित्व का मार्ग हैं। . ....सन् १९५९ कलकत्ता चातुर्मास की समाप्ति पर एक पत्रकार आचार्यश्री के चरणों में उपस्थित हुआ और बोला----मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए । आचार्यश्री ने कहा- "मैंने अभिशाप और दुराशीष कब दी थी? तुमने चार महीने जी भरकर हमारे विरुद्ध लिखा, न लिखने की बात भी लिखी पर मैंने कभी तुम्हारे प्रति दुर्भावना नहीं की, क्या यह आशीर्वाद नहीं
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