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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन अन्तविरोध है, उतना ही अंतविरोध इस स्थिति में है कि लोकतंत्र है और हिसा की प्रबलता है।" अभय, समानता, स्वतंत्रता, सहानुभूति आदि तत्त्व लोकतंत्र को जीवित रखते हैं। लोकतंत्र में अहिंसा के विकास की सर्वाधिक सम्भावनाएं होती हैं। यदि लोकतंत्र में अच्छाइयों का विकास न हो तो इससे अधिक आश्चर्य की बात क्या होगी?'
अहिंसक लोकतंत्र की कल्पना गांधीजी ने रामराज्य के रूप में की पर वह साकार नहीं हो सकी क्योंकि गांधीवाद के सिद्धांतों एवं आदर्शों ने वाद का रूप तो धारण कर लिया पर उनका जीवन में सक्रिय प्रशिक्षण नहीं हो सका। आचार्य तुलसी ने अहिंसक जनतंत्र की कल्पना प्रस्तुत की है, उसके मुख्य बिंदु निम्न हैं
१. व्यक्ति स्वातंत्र्य का विकास । २. मानवीय एकता का समर्थन । ३. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व । ४. शोषण मुक्त व नैतिक समाज की रचना । ५. अंतर्राष्ट्रीय नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठापना । ६. सार्वदेशिक निःशस्त्रीकरण के सामूहिक प्रयत्न ।
७. मैत्री व शांति संगठनों की सार्वदेशिक एकसूत्रता।' अहिंसा और युद्ध
युद्ध की विभीषिका का इतिहास अति-प्राचीन है। प्राचीनकाल से ही आवेश की क्रियान्विति युद्ध के रूप में होती रही है। जिस देश में युद्ध के प्रसंग जितने अधिक उपस्थित होते थे, वह देश उतना ही अधिक शौर्य सम्पन्न समझा जाता था। युद्ध के बारे में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार ईसा पूर्व ३६०० वर्ष से लेकर आज तक मानव जाति कुल २९२ वर्ष ही शांति से रह सकी है। इस बीच छोटे बड़े १४५१४ युद्ध लड़े गए। उन युद्धों में तीन अरब से भी अधिक लोगों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी।
वर्तमान युग के नाभिकीय एवं अणु रासायनिक युद्ध का परिणाम विजेता और विजित दोनों राष्ट्रों को सदियों तक समान रूप से भोगना पड़ता है। युद्ध भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने में भी बहुत बड़ा कारण है। इससे पर्यावरण इतना प्रदूषित हो जाता है कि सालों तक व्यक्ति शुद्ध सांस और भोजन भी प्राप्त नहीं कर सकता । वैज्ञानिक इस बात की घोषणा कर चुके हैं कि भविष्य में युद्ध में १. अतीत का विसर्जन : अनागत का स्वागत, पृ० ११७ । २. जैन भारती, २८ दिस० १९६५ । ३. अणुव्रत, १ दिस० १९५६ ।
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