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आ• तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
प्रायः धर्मग्रन्थों में हिंसा के दुष्परिणामों का करुण एवं रोमांचक वर्णन मिलता है पर आचार्य तुलसी ने आधुनिक मानसिकता को देखकर हिंसा को नरक से नहीं जोड़ा पर अहिंसा के प्रति निष्ठा जागृत करने के लिए उसका मनोवैज्ञानिक पथ प्रस्तुत किया है
० हिंसा करने वाला किसी दूसरे का अहित नहीं करता बल्कि
अपनी आत्मा का अनिष्ट करता है-अपना पतन करता है।' • हम किसी के लिए सुख के साधन बनें या न बनें, कम से कम
दुःख का साधन तो न बनें । सन्तापहारी बनें या न बनें, कम से
कम सन्तापकारी तो न बनें।
निरपराध प्राणियों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकवादियों की अन्तश्चेतना जागृत करते हुए वे कहते हैं- “यदि कत्ले-आम करना चाहते हो तो आत्मा के उन घोर अपराजित शत्रुओं का करो, जिनसे तुम बुरी तरह जकड़े हुए हो, जो तुम्हारा पतन करने के लिए तुम्हारी ही नंगी तलवारें लिए हुए खड़े हैं। अहिंसा का क्षेत्र .. अहिंसा का क्षेत्र आकाश की भांति व्यापक है। आचार्य तुलसी मानते हैं कि अहिंसा को परिवार, कुटुम्ब, समाज या राष्ट्र तक ही सीमित नहीं किया जा सकता । उसकी गोद में जगत् के समस्त प्राणी सुख की सांस लेते हैं। उसकी विशालता को व्याख्यायित करते हुए आचार्य तुलसी का कहना है-अहिंसा में साम्प्रदायिकता नहीं, ईर्ष्या नहीं, द्वेष नहीं, वरन् एक सार्वभौमिक व्यापकता है, जो संकुचितता और संकीर्णता को दूर कर एक विशाल सार्वजनिक भावना लिए हुए है।
उनके द्वारा प्रतिपादित अहिंसा कितनी व्यापक एवं विशाल है, यह निम्न उक्ति से जाना जा सकता है-"किसी भी विचार या पक्ष के विरोध में प्रतिरोध होते हुये भी अहिंसा यह अनुमति नहीं देती कि हमारे दिलों में विरोधी के प्रति दुर्भाव या घृणा का भाव हो।" अहिंसा की शक्ति
____ अहिंसा की शक्ति अपरिमेय है, पर आवश्यकता है उसको सही प्रयोक्ता मिले । आचार्य तुलसी इसकी शक्ति को रूपक के माध्यम से समझाते
१. अहिंसा और विश्व शांति, पृ०८। २. शांति के पथ पर, पृ० ६१ । ३. एक बूंद : एक सागर, पृ० ४७७ । ४. अणुव्रत : गति-प्रगति, पृ० १५६ ।
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