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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
० मैं तोड़-फोड़ करने वालों और घेराव डालने वालों को ही हिंसक नहीं मानता, किन्तु उन लोगों को भी हिंसक मानता हूं, जो अपने आग्रह के कारण वैसी परिस्थिति उत्पन्न करते हैं तथा मानवीय संवेदनाओं का लाभ उठाकर उन्हीं से अपना जीवन चलाते हैं। ० युद्ध करना ही हिंसा नहीं है, घर में बैठी औरत यदि अपने
पारिवारिक जनों से कलह करती है तो वह भी हिंसा है। ० किसी के प्रति द्वेष भावना, ईर्ष्या, उसे गिराने का मनोभाव, किसी की बढ़ती प्रतिष्ठा को रोकने के सारे प्रयत्न हिंसा में
अन्तर्गभित हैं।
आचार्य तुलसी मानते हैं कि हिंसा और आत्महनन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हिंसा हमारे सामने कितने रूपों में प्रकट हो सकती है, उसका उन्होंने मानसिक एवं भावनात्मक स्तर पर सुन्दर विवेचन किया है। यहां उनके द्वारा प्रतिपादित विचारयात्रा के कुछ सन्दर्भ मननीय हैं--
स्व हिंसा का अर्थ है-आत्मपतन। जहां थोड़ी या ज्यादा मात्रा में आत्मपतन होगा, वहीं हिंसा होगी। वास्तव में आत्मपतन ही हिंसा है। ० व्यक्ति कहता कुछ है और करता कुछ है। यह कथनी-करनी
की असमानता अप्रामाणिकता है। इससे आत्महनन होता है, जो हिंसा का ही एक रूप है। ० स्वामी की अनुमति के बिना किसी की कोई वस्तु लेना चोरी
है। चोरी आत्महनन है, जो हिंसा का ही एक रूप है। ० अखण्ड ब्रह्मचर्य का संकल्प लेकर चलने पर भी यदि व्यक्ति को
वासना सताती हो तो यह स्पष्ट रूप से उसका आत्महनन है, जो हिंसा का ही एक रूप है। • सम्पूर्ण अपरिग्रह का व्रत लेकर चलने पर भी यदि मन की मूर्छा
नहीं टूटी है तो यह उसका आत्महनन है, जो हिंसा का ही एक
० प्रतिकूल परिस्थिति एवं प्रतिकूल सामग्री के कारण किसी के मन में अशांति हो जाती है तो यह उसका आत्महनन है, जो हिंसा
का ही एक रूप है। • व्यक्ति अपने आपको ऊंचा और दूसरों को हीन मानता
है। यह उसका अभिमान है, आत्महनन है, जो हिंसा का ही एक रूप है। • काय, भाषा एवं भाव की ऋजुता के अभाव में किसी के साथ
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