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तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
ही रहूं, मैं ही बचूं या अन्तिम जीत मेरी ही हो। वहां की भाषा यही होती है - अपने अस्तित्व में सब हों और सबके अस्तित्व का विकास हो । '
इतने व्यापक स्तर पर अहिंसा की व्याख्या इतिहास का दुर्लभ दस्तावेज है ।
अहिंसा की मौलिक अवधारणा
अहिंसा के विषय में तेरापन्थ के आद्य गुरु आचार्य भिक्षु ने कुछ मौलिक अवधारणाओं को प्रतिष्ठित किया। उन नयी अवधारणाओं को तत्कालीन समाज पचा नहीं सका, अतः उन्हें बहुत संघर्ष एवं विरोध झेलना पड़ा। पर वर्तमान में आचार्य तुलसी ने उनको आधुनिक भाषा एवं आधुनिक सन्दर्भ में प्रस्तुत करने का प्रशस्य प्रयत्न किया है । उनमें कुछ अवधारणाओं को बिंदु रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-
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• शुद्ध अहिंसा है—- हृदय परिवर्तन के द्वारा किसी को अहिंसक
बनाना । जब तक हिंसक का हृदय परिवर्तन नहीं होता, तब तक वह किसी न किसी रूप में हिंसा कर ही लेगा । अतः साधन -शुद्धि अहिंसा की अनिवार्य शर्त है ।
बड़ों की रक्षा के लिए छोटों को मारना, बहुमत के लिए अल्पमत का उत्सर्ग कर देना हिंसा नहीं है यह मानना अहिंसा को लज्जित करना है । हिंसा न छोड़ सकें, यह मानवीय कमजोरी है, पर उसे अहिंसा मानने की दोहरी गलती क्यों करें ?
• अनिवार्य हिंसा को अहिंसा मानना उचित नहीं । आकांक्षाओं के लिए होने वाली हिंसा, जीवन की आवश्यकता पूर्ति करने वाली हिंसा अनिवार्य हो सकती है, पर उसे अहिंसा नहीं कह सकते । " ● किसी को अहिंसक बनाने के लिए हिंसा का प्रयोग करना अहिंसा का दुरुपयोग है ।
• आप लोग न मारें तो मैं भी आपको नहीं मारूं, आप यदि गाली न दें तो मैं भी गाली न दूं, ऐसा विनिमय अहिंसा में नहीं होता
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अहिंसक बनने का उद्देश्य यह नहीं कि कोई न मरे, सब जिन्दा रहें, उसका उद्देश्य यही है कि व्यक्ति अपना आत्मपतन न होने
१. मेरा धर्म : केन्द्र और परिधि, पृ० ६५ ।
२. शांति के पथ पर, पृ० ४७ ।
३. एक बूंद : एक सागर, पृ० २७० ।
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