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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन घर की स्वामिनी बन जाती है । बगीचे में पौधों को पानी देते समय वह मालिन का रूप धारण करती है तो रसोईघर में अपनी पाक-कला का परिचय देती । कपड़ों का ढेर सामने रखकर जब वह धुलाई का काम शुरू करती है तो उसकी तुलना धोबिन से की जा सकती है तो बच्चों को होम वर्क कराते समय वह एक ट्यूटर की भूमिका में पहुंच जाती है। कभी सीनापिरोना, कभी बुनाई करना, कभी झाडू-बुहारी करना तो परवरिश में खो जाना ।" कभी बच्चों की अनुशासन के विविध पक्षों की साहित्यिक एवं क्रमबद्ध अभिव्यक्ति का उदाहरण पढ़िये- "अनुशासन वह कला है, जो जीवन के प्रति आस्था जगाती है । अनुशासन वह आस्था है, जो व्यवस्था देती है । अनुशासन वह व्यवस्था है, जो शक्तियों का नियोजन करती है। अनुशासन वह नियोजन है, जो नए सृजन की क्षमता विकसित करता है। अनुशासन वह सृजन है, जो आध्यात्मिक चेतना को जगाता है। अनुशासन वह चेतना है, जो अस्तित्व का बोध कराती है । अनुशासन वह बोध है, जो कलात्मक जीवन जीना सिखाता है ।" ७७ इसी सन्दर्भ में अध्यात्म की व्याख्या भी पठनीय है "अध्यात्म केवल मुक्ति का ही पथ नहीं, वह शांति का मार्ग है, जीवन जीने की कला है, जागरण की दिशा है और है रूपान्तरण की सजीब प्रक्रिया । " आचार्य तुलसी जीवन की हर समस्या के प्रति सजग हैं। अनेक स्थलों पर वे एक क्षेत्र की अनेक समस्याओं को प्रस्तुत करके एक ऐसा समाधान प्रस्तुत करते हैं, जो उन सब समस्याओं को समाहित कर सके । शैलीगत यह वैशिष्ट्य उनके साहित्य में अनेक स्थलों पर देखने को मिलता है " समाज में जहां कहीं असंतुलन है, आक्रमण है, शोषण है, विग्रह है, असहिष्णुता है, अप्रामाणिकता है, लोलुपता है, असंयम है, और भी जो कुछ वांछनीय है, उसका एक ही समाधान है- संयम के प्रति निष्ठा ।" निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि उन्होंने गद्य साहित्य की लेखन - शैली में अनेक नयी दिशाओं का उद्घाटन किया है । उनकी भाषा अनुभूतिप्रधान है, इस कारण उनका साहित्य केवल बुद्धि और तर्क को ही पैना नहीं करता, हृदय को भी स्पंदित करता है । उनका शब्द चयन, वाक्यविन्यास तथा भावाभिव्यक्ति -- ये सभी विषय की आत्मा को स्पष्ट करने में लगे हुए दिखाई देते हैं । कहा जा सकता है कि उनकी भाषा-शैली स्वच्छ, स्पष्ट, गतिमय, संप्रेषणीय, गम्भीर किन्तु बोधगम्य, मुहावरेदार तथा श्रुतिमधुर है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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