________________
के उच्चारण मात्र से व्रती नहीं बनता। व्रती को मन का निर्माण करना होता है। सबसे पहले माया के शल्य को मिटाना होता है। निदान शल्य
दूसरा शल्य, निदान। निदान का अर्थ है-भोग की आकांक्षा, विषय की आकांक्षा, पदार्थ की आकांक्षा। व्रती बनने वाला भोग से दूर रहता है। भूख आदमी में होती है और वह लगती है। उससे भी ज्यादा भूख है प्रदर्शन और दिखाने की। व्रती के सामने यह भेद स्पष्ट हो जाता है कि आवश्यक क्या है और अनावश्यक क्या है। उसे सामाजिक जीवन जीना है। भिखारी नहीं बनना है; समाज में प्रतिष्ठा रखनी है। शक्ति सन्तुलन रखना है। शक्ति का जीवन, समृद्धि का जीवन जीना है तो उसमें से बड़प्पन की बात निकाल देनी है। सही अर्थ में देखिए, आदमी यथार्थ की भूमिका में नहीं जी रहा है।
भगवान महावीर ने बारह व्रतों की व्यवस्था की है। कई कहते हैं, साधुओं को ऐसी व्यवस्था करने की आवश्यकता है। धर्म आकाश में नहीं लटकता। वह चलता है सामाजिक जीवन में। सामाजिक व्यवस्था अच्छी होती है तो धर्म चलता है। सामाजिक व्यवस्था खराब होने पर धर्म नहीं होता। भगवान महावीर ने दूसरे व्रतों के अतिचारों में कहा है-'कण्णालीए' यानी कन्या के विषय में झूठ नहीं बोलूंगा।
भगवान ने ऐसा क्यों कहा? यह हमारा गृहस्थ धर्म का प्रश्न है। जिसके व्यवहार में धर्म का प्रतिबिम्ब नहीं आता, वह धर्म कैसे कर सकेगा? पहला प्रश्न है, समाज की व्यवस्था में सुधार और परिवर्तन कैसे हो? देश की व्यवस्था में सुधार कैसे
८०
धर्म के सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org