________________
समझना चाहिए ।
क्रूरता और सम्यक् दर्शन एक साथ नहीं टिक सकते।
अनुकम्पा का अर्थ है - हृदय की द्रवता या हृदय की कोमलता । एक बार महात्मा गांधी से एक विदेशी ने पूछा - 'आपकी दृष्टि में वह कौन-सी बात है जिसके आधार पर हिन्दुस्तान के प्रति आप आश्वस्त हैं और वह कौन-सी बात है जिससे आप निराश होंगे ?' गांधी ने उत्तर दिया- ' हिन्दुस्तान की आत्मा में अहिंसा का स्रोत प्रवहमान है, इससे मैं आश्वस्त हूं। आज की नई पीढ़ी में करुणा का स्रोत सूख रहा है, इससे मैं निराश हूं।'
आज हिंसा चल रही है । एक व्यक्ति दूसरे को बिना प्रयोजन मार डालता है, बिना अपराध मार देता है । आज जो हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है । किन-किन को मारना है, हत्यारों के पास सूची है। मारने वाले पागल नहीं हैं, पढ़े-लिखे हैं । उद्देश्यपूर्वक मारते हैं। प्रमुख जमींदारों, पूंजीपतियों और शिक्षाशास्त्रियों को मारते हैं, जो उनके विचारों के प्रतिकूल हैं। उनकी मान्यता है - बुर्जुआ वर्ग क्रांति में सबसे अधिक बाधक है। इसको समाप्त किए बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते । सम्भवतः आप उनके चिन्तन को दोषी कहेंगे । दोष एक पक्षीय नहीं होता। उनके मन में क्रूरता क्यों हुई ? यदि आपके मन में अनुकम्पा है, तो दूसरों के हृदय में क्रूरता पैदा नहीं करेगी।
श्रीमद् रायचन्द जैन धर्म के बड़े साधक व्यक्ति थे । महात्मा गांधी ने लिखा है कि मैंने किसी को गुरु तो नहीं बनाया, लेकिन मुझ पर अहिंसा का सबसे अधिक प्रभाव श्रीमद् रायचन्द का पड़ा है। वे आध्यात्मिक साधक थे । वे गृहस्थ थे। गृहस्थ जीवन में भी उनकी साधना इतनी उच्च थी कि कई साधु भी वहां
।
Jain Education International
· न्यकदृष्टि (४) ६३
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org