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बन्धन नहीं बनाता?
हर व्यक्ति स्वतंत्र रहना चाहता है। दूसरे की बात मानना नहीं चाहता। मनुष्य की प्रकृति ही ऐसी है कि वह परतंत्रता को स्वीकार नहीं करता । आत्मा पर शरीर का बन्धन है । इसलिए वह छटपटाती है और स्वतंत्र होना चाहती है । स्वतंत्रता आत्मा की सहज मांग है। सुआ भी पिंजड़े में रहना नहीं चाहता । हाथी भी मुक्त - विहार चाहता है । यह दूसरी बात है, हाथी जंगल में बांध दिए जाते हैं। आदमी भी बन्धन नहीं चाहता है ।
दो प्रकार का होता है- आभ्यन्तर और बाह्य | आभ्यन्तर बन्धन १४ प्रकार का होता है और बाह्य बन्धन ६ प्रकार का इनके द्वारा आदमी अपने आपको बांध लेता है। जहां ममत्व या अपनत्व होता है, वहां बन्धन हो जाता है। स्नान करने के लिए एक व्यक्ति तालाब में घुसता है। हजारों मन पानी ऊपर छा जाता है, पर उसे भार या बन्धन नहीं लगता। वही व्यक्ति जब पानी से भरा एक घड़ा कंधे पर रखकर चलता है तब भार लगता है, क्योंकि पानी को सीमा में बांध लिया । अन्तर से आत्मा मुक्त होने के लिए छटपटाती है। वह मुक्त होना चाहती है, परिग्रह से, पारिवारिक सम्बन्धों से । इस शरीर से भी मुक्त होना चाहती है। जिसमें यह भावना जाग जाती है, समझना चाहिए उसकी दृष्टि सम्यक् हो गयी ।
अनाशक्ति
भगवान महावीर ने कहा है- इन्द्रियों के विषय क्षणमात्र सुख देते हैं, उसका परिणाम दुःखकर और लम्बा होता है । एक घटना तत्काल घट जाती है, परन्तु उसका परिणाम दीर्घकाल
५४ धर्म के सूत्र
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