________________
हो जाए तो उसे पाक्षिक प्रतिक्रमण कर क्षमा याचना करनी चाहिए। उस दिन न हो तो चातुर्मासिक पाक्षिक के दिन कर ले। उस दिन भी न हो तो संवत्सरी के दिन तो अवश्य ही कर ले। उस दिन न करने से न साधुपन रहता है, न श्रावकपन और न सम्यक्दृष्टि ही। एक साधु का दूसरे साधु के साथ विवाद हो जाने पर क्षमायाचना न करे तो वह भोजन नहीं कर सकता। उसे निर्मल भाव से क्षमायाचना करनी होती है। जो संवत्सरी के अवसर पर भी क्षमायाचना न करे वह भला सम्यक्दृष्टि कैसे रह सकता है?
मन तीव्र होने पर भी सम्यक्दृष्टि नहीं रहती। सम्यक्दृष्टि वह होता है जिसका मन शांत हो, जो विनम्र हो। विनम्रता धर्म का बड़ा गुण है।
जर्मन के महाकवि गेटे पार्क में घूम रहे थे। सामने से दूसरा आदमी आ गया। गेटे ने कहा- 'देखकर चलो, सामने दूसरा आदमी है। उत्तर मिला- 'मैं किसी दूसरे के लिए रास्ता छोड़ना नहीं जानता।' गेटे-'मैं मूर्तों के लिए रास्ता छोड़ना जानता हूं।'
यह अकड़ की बात क्यों चलती है? इसलिए कि कई लोग विनम्र होने का मूल्य नहीं समझते। विचारशील बुद्धि से काम लेता है। वह शालीन होता है। कड़ाई से काम लेने की पद्धति राठोरी है। इस वृत्ति ने ही राजस्थान का विनाश किया। यदि राजस्थान में नीतिज्ञता और विनम्रता होती तो मेवाड़ मुसलमानों से पराजित नहीं होता। वास्तव में जो धार्मिक है, उसमें विनम्रता होनी चाहिए।
जिसमें ऋजुता नहीं वह सम्यक्दृष्टि नहीं हो सकता। आदमी
५० में धर्म के सूत्र Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org