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सामायिक में नींद आ गई। सामायिक का अर्थ है-पल-पल की जागरूता। उसका नींद से क्या मतलब? किसी कारण से उन्हें नींद आ गई। स्वामीजी ने देखा तो बोले-'आसोजी! नींद लेते हो?' उत्तर मिला-'नहीं, महाराज!' स्वामीजी ने दूसरी और तीसरी बार यही प्रश्न दोहराया, उत्तर भी वही मिलता रहा। चौथी बार स्वामीजी ने पूछा-'आसोजी! जी रहे हो?' उत्तर वही मिला-'नहीं, महाराज!'
पिछले तीन बार तो झूठा उत्तर था, परन्तु चौथी बार का उत्तर सत्य था। वास्तव में जो नींद लेता है वह जीता नहीं। जीता वह है, जो जागता है। हमारी चेतना का विकास जितना होता है, उतना ही हम जीते हैं। चेतना जितनी आवृत होती है, उतनी मृत्यु होती है। मृत्यु के क्षण में आदमी सारी बातों को भुला देता है, धर्म की आवश्यकता को भुला देता है। जागरूकता का क्षण मनन का होता है। ऐसा मत सोचिए कि बहुत पढ़ा-लिखा ही सोच सकता है। जो सोचता नहीं, उसकी सोचने की शक्ति नष्ट हो जाती है। आंख, कान आदि को भी काम में न लेने से उनकी शक्ति क्षीण हो जाती है। आयुर्वेद में लिखा है कि इन्द्रियों के अयोग और अतियोग से शक्ति नष्ट होती है, इसलिए योग करना चाहिए।
हमारे भीतर चेतना है। परम तत्त्व तक पहुंचने का विकास इसी चेतना के द्वारा हुआ है। हमारे भीतर इतनी शक्तियां छिपी हैं, उन्हें पहचान नहीं पाते। क्या महावीर आकाश से उतरे थे? क्या गांधी धरती से निकले थे? गांधी एक पतला-दुबला आदमी था, जिसने सारी दुनिया को हिला दिया। ऐसा क्यों हुआ? इसलिए कि उन्होंने अपने आपको पहचाना। जो अपनी शक्ति को नहीं
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