________________
धर्म है आंतरिक संपदा
'तव प्रेष्योऽस्मि दासोऽस्मि, सेवकोऽस्म्यस्मि किंकरः।
ओमिति प्रतिपद्यस्व, नाथ! नातः परं ब्रुवे ॥ भगवान महावीर की स्तुति करते हुए कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है-भगवन्! मैं आपका प्रेष्य हूं, दास हूं, सेवक हूं और किंकर हूं। आप केवल स्वीकृति दे दें कि हां हो। बस इससे अधिक मुझको कुछ नहीं चाहिए।
क्या कोई प्रेष्य बनना चाहता है? क्या कोई किंकर बनना चाहता है? हर व्यक्ति मालिक बनना चाहता है। तब आचार्य ने भूल क्यों की-मैं प्रेष्य, दास, सेवक और किंकर बनूं। सब लोगों की मांग से उल्टी मांग क्यों की? ___एक लड़का जा रहा था। रास्ते में चलते-चलते उसे भूख सताने लगी। इधर-उधर देखा तो एक झोंपड़ी दिखाई दी उसके पास गया। उसमें बाबा बैठा था। उसने प्रणाम किया और कहा-'बाबा! भूख लगी है, कुछ खाने को दो।' बाबा ने पूछा-'कहां जा रहे हो?' 'मैं तो नौकरी की खोज में निकला हूं।' बाबा बोला-'चेला क्यों नहीं बन जाते?' बाबा को चेले की भूख थी और यह सीधा आ ही गया था। अवसर का लाभ उठा, बाबा ने प्रश्न उसके सामने रख दिया। लड़का बोला-'चेला
धर्म है आंतरिक संपदा - ३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org