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पहली चींटी जब उसके घर गई तो अपने घर से नमक की डली मुंह में रख ली थी। मिश्री के पर्वत पर पहुंची। दूसरी ने कहा-चाहे जिधर से खाओ तुम्हें मिठास ही मिठास मिलेगी। पहली ने कहा-मुझे तो कुछ भी मिठास नहीं आता।
दूसरी ने पूछा-तुम्हारे मुंह में क्या है?
पहली ने उत्तर दिया-मेरे घर का खाना है, नमक की डली है।
दूसरी ने कहा-जब तुम्हारे मुंह में नमक है, तब मिठास कैसे मिलेगी?
जब तक मिथ्यात्व का नमक है तब तक सम्यक् दर्शन की मिठास कैसे आएगी? एक बार नमक को छोड़ो तब मिठास आएगी। सम्यक्दर्शी भी बनना चाहते हो और गलत धारणाओं, गलत मापदण्डों और मिथ्या दृष्टिकोणों में परिवर्तन भी करना नहीं चाहते, तब सम्यक् दर्शन कैसे मिलेगा?
हिन्दुस्तान की गरीबी में क्या धर्म की गलत मान्यताओं का हाथ नहीं है? धर्म की गलत मान्यताओं के कारण ही भारत का किसान भाग्य के भरोसे बैठा है। भाग्य को लिखते किसने देखा है? भाग्यवाद ने ही व्यक्ति को बेकार और आलसी बनाया है। किसी भी देश ने विकास किया है तो अपने पुरुषार्थ से ही किया है। पुरुषार्थ से भाग्य का निर्माण होता है। भगवान महावीर ने भाग्यवाद की एकांगिकता का खंडन करते हुए कहा है-कोरे भाग्य पर बैठना निरी मूर्खता है। पुरुषार्थ को आगे रखकर चलो।
उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषार्थ-इनसे कार्य सधता है और भाग्य का उदय होता है। पुरुषार्थ के बिना कर्म भी
२२ मा धर्म के सूत्र
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