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अहं त्याज्य है, वैसे ही हीनभावना भी त्याज्य है। भगवान महावीर ने कहा है-'नो हीणे नो अइरित्ते' अहं से क्षमता समाप्त होती है और हीनता से कर्तृत्व समाप्त हो जाता है। कोई किसी से हीन नहीं है, कोई किसी से विशेष नहीं है। मुक्त आत्मा भी आत्मा की दृष्टि से अपने से अधिक नहीं है। न तो अपने को दूसरों से हीन समझो और न दूसरों को अपने से हीन समझो। दूसरों को अपने से बड़ा न मानो और न अपने को दूसरों से बड़ा मानो। जिसमें 'नो हीणे नो अइरिते' आ गया, उसमें सामायिक आ गया। एक मुहूर्त का सामायिक नहीं, जीवन का सामायिक। सामायिक है समता की आराधना। समता का सूत्र समझ में आ जाए तो मानसिक बीमारियां मिट जाएं। जीवन में सामायिक आने से क्रोध का स्वभाव भी कम हो जाता है। बाप बेटे से कहता है, वह नहीं मानता है तो गुस्सा आ जाता है। सास की बात बहू न माने तो सास को क्रोध आ जाता है। सेठ को नौकर पर गुस्सा आ जाता है। यह गुस्सा दूसरे को हीन और अपने को बड़ा मानने से आता है। वह सोचता है मैंने कहा, फिर भी उसने मेरी बात नहीं मानी। जो धर्म को समझता है, उसे चिन्तन करना चाहिए कि दूसरों को सुझाव देना मेरा काम है। हर व्यक्ति सोचने में स्वतंत्र है। वह यदि मेरी बात नहीं मानता है तो मुझे क्रोध क्यों करना चाहिए? भगवान महावीर ने जो समता का सूत्र दिया है, उसे अपनाकर हम हर कठिनाई से बच सकते हैं। धर्म का मर्म समझे बिना समता नहीं आती। हिंसा
हिंसा दो प्रकार की है-अर्थहिंसा और अनर्थहिंसा। प्रयोजन
१८४ म धर्म के सूत्र Jain Education International
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