________________
प्रेक्षा धर्म है, श्वास को देखना धर्म है और शरीर के प्रकम्पनों को देखना-जानना धर्म है। यह बिना पैसे का धर्म है जिसमें कुछ भी नहीं खर्च करना पड़ता, केवल अपनी वृत्तियों को मोड़ना होता है, उनकी दिशा को बदलना होता है।
धर्म सबसे सस्ता है, पर वह महंगा बन जाता है व्यवस्थाओं के साथ। जब धर्म के साथ कुछ व्यवस्थाएं जुड़ जाती हैं, तब वह महंगा बन जाता है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि धन धर्म का साधन बन नहीं सकता। वह व्यवस्था का साधन हो सकता है और व्यवस्था का साधन तो वह है ही। धन के अर्जन, व्यय और संचय को उन्हीं लोगों ने धर्म माना जो धन से धर्म की बात करते हैं। इस मिथ्या सिद्धान्त ने अनेक विकृतियां पैदा की हैं। अतः आवश्यकता है इसे इच्छी तरह समझा जाए।
__ जो पैसों के द्वारा धर्म की आराधना करना चाहते हैं, उनके लिए तो धर्म सस्ता या महंगा हो सकता है, किन्तु हमारे सामने तो यह अर्थहीन प्रश्न है। हमारा धर्म जुड़ा हुआ है-ज्ञान से, दर्शन से और चरित्र से। ये तीनों अमूल्य हैं। इनकी आराधना मूल्य से नहीं हो सकती।
१०म धर्म के सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org