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ध्यान देना है। एक ओर सामायिक और दूसरी ओर घर में लड़ाई, इनमें सामंजस्य कहां है? धर्म करने वाले स्वास्थ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते। स्वस्थता के बिना धर्म कैसे होगा? आर्थिक स्थिति और सामाजिक समस्या भी धर्म में बाधक बनती है। सब चीजें वर्तमान पर टिकती हैं। वर्तमान की समस्या का इलाज भी वर्तमान में होता है।
आचार्य भिक्षु के समय संत हेमराजजी गोचरी गए। मूंग और अरहर की दाल एक साथ ले आए। भिक्षु स्वमी ने उपालंभ दिया। मूंग की दाल अलग होती तो किसी बीमार साधु के काम आ सकती थी। उपालम्भ सुन वे चले गए और सो गए। संत सब भोजन के लिए बैठे तो हेमराजजी नहीं थे। पूछा-'कहां है?' किसी ने उत्तर दिया--'वे तो सो रहे हैं।'
भिक्षु स्वामी ने हेमराजजी स्वामी को सम्बोधित करते हुए पूछा-'क्या कर रहे हो?'
उत्तर-'सोच रहा हूं। प्रश्न-'अवगुण मेरा देखते हो या अपना?'
उत्तर-'अवगुण तो अपना ही देख रहा हूं।' बस फिर क्या था, तत्काल खड़े हो गए। वर्तमान की समस्या का इलाज वर्तमान में ही हो गया।
जिन्होंने वर्तमान को समझा, उन्होंने भविष्य को भी ठीक कर लिया। धर्म को समझने का अर्थ है वर्तमान को समझना। वर्तमान को सुधारने से भविष्य स्वयं सुधर जाएगा।
हिंसा और अहिंसा - १६६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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