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चिन्ता क्यों करें? जो वर्तमान को नहीं जानता, वह भविष्य को भी नहीं जानता। परन्तु आज के धार्मिक लोगों में मिथ्या विश्वास घर कर गया है। वे वर्तमान पर सूक्ष्मता में ध्यान दें तो पता लगेगा कि क्रिया का फल वर्तमान में ही मिल रहा है। मानसिक आवेग
किसी के घाव होता है, लोग समझते हैं कीटाणु के कारण हुआ है। पर गहराई से ध्यान दें तो आपको लगेगा मानसिक अशुद्धता से बीमारी हुई है। ईर्ष्या से व्रण हो जाता है। आयुर्वेद में भी लिखा है-भय से हार्ट कमजोर हो जाता है। बुरे चिन्तन से कोढ़ की बीमारी हो जाती है। मेरे मन में संशय था, परन्तु होमियोपैथी के डॉ. हैनिमन की प्रस्तावना पढ़ी ता समझ में आया, उसमें लिखा है-बीमारी का मूल कारण कीटाणु नहीं है। बीमारी की जड़ अचेतन मन में होती है। मन को शुद्ध कीजिए, विकार दूर कीजिए, बीमारी मिट जाएगी। अधिकांश बीमारी अन्तर्मन पर निर्भर करती है। यदि वर्तमान पर थोड़ा-सा ध्यान दें उसे समझें तो कठिनाई मिट सकती है। भाव-क्रिया
भाव-क्रिया वर्तमान की क्रिया का ही रूप है। पहले और पीछे की क्रिया द्रव्य-क्रिया होती है। छह नयों में एक नय एवं भूत होता है। वह वर्तमान की क्रिया को ही स्थान देता है। भिक्षा लेते समय साधु साधु नहीं है, भिक्षु है। साधना करते समय वह भिक्षु नहीं, साधु है। बोलते समय साधु मुनि है। यह वर्तमान का विवेक है। आज के धार्मिकों को वर्तमान पर
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