________________
है तो यह ध्यान हो सकता है। ऐसा रूप कि जिसके बारे में किसी को कुछ कहना नहीं हो सकता। शिविर में आने वालों ने कहा, हम लोग यहां आए, न पंथ की, न गच्छ की बात सुनी, न किसी के बारे में कुछ सुना। मैंने कहा-आप तो गच्छ
और सम्प्रदाय की बात करते हैं, ध्यान का मार्ग तो ऐसा है कि जहां आदमी भी नहीं बचता। कोरा चैतन्य बचता है। आदमी बचे तब गच्छ की, सम्प्रदाय की बात होगी।
एक व्यक्ति ने पूछा-'उस बांझ का पुत्र गोरा है या काला?' पास में बैठा व्यक्ति बोला-बांझ के बेटा होता है या नहीं, पहले यह तो सोचो, गोरे-काले की बात तो बाद में आएगी। पहले ही कैसे चिन्ता करते हो?' जहां चैतन्य ही होता है, आदमी ही नहीं बचता तो वहां सम्प्रदाय, गच्छ आदि की बात कहां से आएगी।
यह वर्तमान की समस्या का नया समाधान हमारे सामने प्रस्तुत है। कई लोगों ने कहा-काम तो बहुत अच्छा, पद्धति बहुत अच्छी पर स्पुतनिक के युग में हमारी गति बैलगाड़ी जैसी है। इस बात पर काफी लोगों ने चिन्ता प्रकट की है। इस बात को पकड़ा गया, विचार किया गया, सोचा गया कि यदि स्पुतनिक तक न पहुंच सकें तो कम-से-कम वायुयान तक तो पहुंचे ही।
लोगों को प्रेरणा मिली है और मैं सोचता हूं कि आचार्यवर का आशीर्वाद सभी लोगों की प्रबल जिज्ञासा और भावना तथा युग की बहुत प्रबल मांग-इन सारी स्थितियों के संदर्भ में धर्म का सार्वभौम रूप क्रियान्वित होकर रहेगा।
१६४ में धर्म के सूत्र Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org