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का कारण होता है। राजा काल को बदल देता है। अच्छा काल होना, बुरा काल होना, यह राजा पर निर्भर है।
राजा एक प्रतीक शब्द है। जो नेता, मुखिया या संचालक है, उसके ऊपर निर्भर होता है काल को बदल देना। मैं मानता हूं कि ध्यान के इस प्रयत्न ने सचमुच काल पर युगान्तर स्थापित किया है।
जिस बात की कोई संभावना नहीं थी कि ध्यान के प्रयोगों के द्वारा धर्म के मंच पर एक अद्भुत आकर्षण पैदा होगा, ऐसा सोचा नहीं जा रहा था किन्तु 'राजा कालस्य कारणम्' -जो नेता होता है, संचालक होता है, आचार्य होता है वह काल को बदलने वाला होता है। आप इस बात पर विश्वास करें कि काल को बदलने वाला होना चाहिए।
मुझे वह कहानी याद आती है। राजा बहुत खर्च करने लगा। खजाने में से बहुत बांटने लगा। बहुत व्यय करने लगा। खजांची आया और बोला-महाराज! आपके पुरखों का इकट्ठा किया हुआ खजाना, इस प्रकार आप खर्च करेंगे तो खाली हो जाएगा। यह आप कैसे करते हैं?' राजा बोला-'किसे कह रहे हो? क्या मैं चौकीदार हूं? रखवाली करना चौकीदार का काम है। मैं चौकीदारी के लिए पैदा नहीं हुआ हूं। रखवाली करना मेरा काम नहीं है। मेरा काम है-बढ़ाना, बढ़ाना। खजाना खाली होगा तो फिर भरेगा, इसकी मुझे चिन्ता नहीं। यह चौकीदारी मुझसे नहीं हो सकती।'
एक होता है चौकीदार रखवाली करने वाला और एक होता है-बांटने वाला। जो स्वयं स्वतंत्र होता है। चौकीदार का काम उसके लिए अच्छा नहीं होता। यह बांटने की बात हमारे १६२ में धर्म के सूत्र
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