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गिर जाता है।
जिसकी आत्मा में लेप (भोग) है, उसमें वासना, भावना, संस्कार आते हैं, वे चिपक जाते हैं। आत्मा उन्हें बांध लेती है, अथवा वे आत्मा में बंध जाते हैं। जिसकी आत्मा में लेप नहीं है, उसको वासना आदि मात्र स्पर्श कर चले जाते हैं।
इस दुनिया में जीने वाले खाना नहीं छोड़ सकते, पानी नहीं छोड़ सकते, आंखों से देखना नहीं छोड़ सकते, कानों से सुनना नहीं छोड़ सकते। खाएंगे, पीएंगे, आंखों से देखेंगे और कानों से सुनेंगे। समाज में रहते हैं, इसलिए एक-दूसरे से अलग होकर नहीं रह सकते, फिर आत्मा तक कैसे पहुंच पाएं, यह बड़ा प्रश्न है?
शरीर है तो क्रियाएं भी होंगी। खाना भी पड़ेगा, परन्तु खाने के साथ-साथ क्या, कैसे और कितना को जोड़कर देखो। खाना क्यों? खाना कैसे और खाना कितना? आंखों से भी देखना होगा, पर क्या, कैसे और किस भाव से देखें? इन प्रश्नों के सन्दर्भ में देखने से अन्तर आ जाएगा।
गृह्णाति दन्तैर्शिशुराखुपोतः, पद्मं च वंशं दशति द्विरेफः। भार्यां सुतां श्लिष्यति वै मनुष्यः,
तत्रापि नित्यं मनसः प्रमाणम् ॥ बिल्ली चूहे को पकड़ती है और अपने बच्चे को भी पकड़ती है। चूहे को पकड़ने वाले दांत दूसरे नहीं होते। जिन दांतों से बच्चे को पकड़ती है, उन्हीं दांतों से चूहे को भी पकड़ती है। दोनों में कितना अन्तर होता है! पहले में सुरक्षा की भावना
१४२ म धर्म के सूत्र Jain Education International
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