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संस्कारों का परिवर्तन
‘पन्नगे च सुरेन्द्रे च, कौशिके पादसंस्पृशि।
निर्विशेषमनस्कायः श्रीवीरस्वामिने नमः ॥' भगवान महावीर को नमस्कार करता हूं जो शत्रु और मित्र पर समान थे। कौशिक (सप), जिसने डंक मारा, उसे भी कृपा-दृष्टि से देखा और कौशिक (इन्द्र), जिसने नमस्कार किया, उसे भी उसी दृष्टि से देखा। समदृष्टि से देखने वाले महान् आत्मा को नमस्कार करता हूं। स्वभाव परिवर्तन
नया और पुराना पर्याय का क्रम है। पर्याय का परिवर्तन न हो तो दुनिया में कुछ टिकता नहीं। जिसका पर्याय परिवर्तन होता है, वही वस्तु टिकती है। क्या कोई वस्तु है, जो है, पर बदले नहीं?
जिसमें उत्पाद, व्यय और धुव्रता होती है, वही सत् होता है। जिसमें उत्पाद और व्यय नहीं, वह सत् नहीं हो सकता। दूध को जामिन देते हैं, दही बन जाता है। दूध का रूप व्यय होता है, दही का रूप उत्पन्न होता है। लेकिन गोरस दोनों में रहता है। आयुर्वेद में कहा है-दूध को खाना चाहिए और
१०० में धर्म के सूत्र
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