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४. कैवल्य और धर्मोपदेश
साधना की सिद्धि प्रथम प्रवचन चतुरंग मार्ग मुनि-धर्म गृहस्थ-धर्म अन्तर्मुखी दृष्टिकोण मानवीय एकता आत्मा ही परमात्मा पुरुषार्थ
ग्यारह स्थापनाएं ५. धर्मतीर्थ-प्रवर्तन
द्विविध धर्म अनेकान्त का मंत्रदान
संघ-व्यवस्था ६. मूल्य परिवर्तन
धर्म का सामाजिक मूल्य ७. वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में जैनधर्म का योगदान
अहिंसा और कषाय-मुक्ति अहिंसा और स्वतंत्रता अहिंसा और समता अहिंसा और सह-अस्तित्व अहिंसा और समन्वय तत्त्व-दर्शन जीव और अजीव आश्रम और बन्ध दु:ख-चक्र दु:ख-चक्र से मुक्ति का उपाय तत्त्व-दर्शन का प्रयोजन
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