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वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में जैन धर्म का योगदान/६७
भगवान् की भाषा में यह बढ़ी हुई हिंसा के प्रति हिंसा है। आज का चिन्तन महावीर की उस भाषा को दोहरा रहा है कि हिंसा की वृद्धि को रोकने के लिए सत्ता और धन के एकाधिकार को रोकना आवश्यक है। उसे रोकने का महावीर का उपाय था हृदय-परिवर्तन । आज के राजनीतिक दार्शनिकों ने इसका उपाय बतलाया है दंड-शक्ति। किन्तु दंड-शक्ति का प्रयोग होने के बाद अब यह विचार-बीज अंकुरित हो रहा है कि जनता का विचार बदले बिना दंड-शक्ति सफल नहीं हो सकती।
प्रतिहिंसा से बचने का सौम्य उपाय है परिग्रह की स्वेच्छाकृत मर्यादा। इस मर्यादा का फलित होता है परिग्रह का संविभाग-सम्यक् विभाजन। अहिंसा और स्वतन्त्रता
महावीर मनुष्य की स्वतन्त्रता का अपहरण नहीं चाहते थे। स्वतंत्रता का अपहरण हिंसा है। जहां हिंसा है वहां समस्या है, दु:ख है। इस दु:ख से छुटकारा पाने के लिए महावीर ने आत्मानुशासन का सूत्र दिया है। उन्होंने कहा-अपने आपको अनुशासित करो। अपने आपको अनुशासित करना सबसे कठिन है। अपने आपको अनुशासित करने वाला वर्तमान और भविष्य में-जीवन की दोनों धाराओं में सुखी होता है।
मेरे लिए यही श्रेष्ठ है कि संयम और तप के द्वारा मैं स्वयं को अनुशासित करूं। कोई दूसरा बंधन और वध के द्वारा मुझे अनुशासित करे, यह मेरे लिए अच्छा नहीं है। महावीर ने अहिंसा की धारा को स्वतन्त्रता की धारा से और स्वतंत्रता की धारा को संयम और तप की धारा से कभी पृथक् नहीं देखा। अहिंसा और समता
जैसे ही अहिंसा का चक्षु उद्घाटित होता है वैसे ही आवरणों से ढकी हुई आत्मा की समानता प्रकट हो जाती है। गौतम ने महावीर से पूछा-'भंते! हाथी और कुंथु की आत्मा समान है?'
भगवान् ने कहा-'हाथी और कुंथु की आत्मा समान है? हाथी का शरीर स्थूल है और कुंथु का शरीर सूक्ष्म है। शरीर का भेद होने पर भी आत्मा के स्वरूप में कोई भेद नहीं है। जैसी आत्मा हाथी की है, वैसी ही कुंथु की है। शरीर, इन्द्रिय, रंग-रूप, जाति आदि के बाहरी भेदों को देखकर
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