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७. वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में
जैन धर्म का योगदान
अहिंसा और कषाय-मुक्ति
भगवान् महावीर सत्य को एक ही दृष्टिकोण से नहीं देखते थे। वे एक कोण से नहीं देखते, ऐसा नहीं है। एक कोण से देखना भी आवश्यक है। पर वह कोण समग्र से निरपेक्ष नहीं होना चाहिए। भगवान् ने निष्पत्ति के कोण से देखा तो कहा-'समस्या का मूल हिंसा है।' उत्पत्ति के कोण से देखा तो कहा-'समस्या का मूल कषाय है।' कषाय का अर्थ रंगा हुआ चित्त
और रंगा हुआ मन । राग से रंगा हुआ मन प्रीति का अनुभव करता है। द्वेष से रंगा हुआ मन अप्रीति का अनुभव करता है। प्रीति से लोभ होता है। लोभी मन में माया उपजती है, वासना उभरती है, परिग्रह के प्रति मोह जागता है। द्वेष से रंगा हुआ मन ऐश्वर्य, जाति, बल, रूप आदि का अहंकार करता है। अहंकारी मन में क्रोध उपजता है, घृणा पनपती है। कलह की आग सुलगती
राग लोभ और माया को जन्म देता है। द्वेष अहंकार और क्रोध को जन्म देता है। क्रोध, अहंकार, माया और लोभ-ये सब समस्याओं को जन्म देते हैं। भगवान् महावीर ने इस सत्य का अनुभव कर कषाय-मुक्ति की साधना का प्रतिपादन किया। कहा जाता है कि अहिंसा परम धर्म है। वह भगवान् महावीर की महान् देन है। यह सत्य है। किन्तु इस सत्य के पीछे यह सत्य छिपा हुआ है कि कषाय-मुक्ति परम-धर्म है। वह भगवान् महावीर की महान् देन है। कषाय बीज है। हिंसा उसका फल है। कषाय-मुक्ति बीज है। अहिंसा उसका फल है। फल को देखने वाले अहिंसा को भगवान् महावीर
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