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गृहवास के तीस वर्ष/१९
है।' महामात्य मितव्ययी था। पर आज उसकी प्रकृति ने भी करवट ले ली। वह पूर्ण उदार हो गया। महाराज से इन सबकी स्वीकृति प्राप्त कर उसने नगर में सब घोषणाएं करवा दीं। जनता ने उन्हें आश्चर्य के साथ सुना। वह प्रसन्न हुई राजकुमार के जन्म का संवाद पाकर और बहुत प्रसन्न हुई उसके जन्मोत्सव मनाने के प्रकार की सूचना सुनकर। वह समूचा दिन उत्सवमय रहा। यह जन्म-उत्सव क्या था वास्तव में गरीबों के कल्याण का उत्सव था। वह उत्सव दस दिन तक चला। जन-जन निहाल हो गया। वर्द्धमान . नाम और रूप इस जगत् के मुख्य तत्त्व हैं। शिशु रूप लेकर जन्मा था। नाम उसके साथ अभी जुड़ा नहीं था। महाराज सिद्धार्थ ने स्वजन वर्ग को आमन्त्रित कर उसका सम्मान किया। भोज के बाद सब एकत्र हुए। स्वजन-वर्ग ने राजकुमार के नामकरण का प्रस्ताव किया। उस समय नामकरण माता-पिता ही किया करते थे। इस परम्परा के अनुसार महाराज सिद्धार्थ ने कहा-'यह कुमार त्रिशला देवी के गर्भ में आया तब से हमारे कुल में हिरण्य-सुवर्ग, धन-धान्य आदि की अकल्पित वृद्धि हुई है। संपदा के साथ-साथ पारिवारिक सौहार्द में भी वृद्धि हुई है। समूचे जनपद के कल्याण की वृद्धि हुई है। इन सबको ध्यान में रखकर मैं कुमार का नाम वर्द्धमान रखना चाहता हूं।'
त्रिशला ने महाराज के प्रस्ताव का समर्थन किया। कुमार का वर्द्धमान नाम घोषित हो गया।
कुमार के निमित्त से कुल का वैभव बढ़ रहा था और समय के निमित्त से कुमार स्वयं बढ़ रहा था। साधारण शिशु जैसे-जैसे बढ़ता है वैसे-वैसे उसके संस्कार निर्मित होते हैं और वर्द्धमान जैसे-जैसे बढ़ रहा था वैसे-वैसे उसके संस्कार शांत हो रहे थे। कुमार न कभी रोता था और न कभी हंसता था वह सदा सहज प्रसन्न रहता। उसके मुख पर अद्भुत आभा थिरकती रहती। उसमें बाल-सुलभ स्फूर्ति थी, पर चपलता नहीं थी। कभी-कभी उसकी गम्भीर मुद्रा देख परिचारिकाएं चिंतित हो उठतीं। उसे चेतना का धरातल प्राप्त था। वहां पहुंचकर वह जीवन के तल से अतीत-सा १. कल्पसूत्र, ९९-१००, टिप्पनक पृ. १२, १३ । (मुनिश्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित)
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