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गृहवास के तीस वर्ष/१७
उसका साथ नहीं छोड़ा। उसका रूप अद्भुत था। रूप की विशेषता कुछ दूसरे लोगों में भी मिलती है। उस शिशु में एक अद्भुत बात और थी-उसके श्वासोच्छ्वास से एक सुगंध फूट रही थी। उस कमल जैसी सुरभि से आस-पास का वातावरण सुरभित हो उठता था। श्वासोच्छ्वास में सुगंध होना असााधारण बात थी। वह शिशु के धर्म-चक्रवर्ती होने की सूचना थी। पसीना आना और मैल जमना शरीर की सामान्य प्रकृति है। किन्तु उस शिशु के शरीर में न पसीना आता था और न मैल जमता था। शरीर के विकारों को निकलने के लिए पसीना आना जरूरी है। स्वास्थ्य का नियम है कि रोम कूप खुले रहें और उनमें से पसीना विजातीय तत्त्वों को लेकर बाहर निकलता रहे। शिशु अत्यन्त पवित्र था। उसके विकार बहुत क्षीण हो चुके थे। उसका शरीर रोगमुक्त था। आंतरिक पवित्रता शरीर के स्वल्पमात्र विकारों को रूपान्तरित कर देती थी। न विकार संचित थे और न उन्हें निकालने के लिए पसीना आना जरूरी था।
शिशु का रक्त और मांस गोक्षीर-धारा की भांति धवल था। शरीर-शास्त्र के अनुसार रक्त में श्वेत और लाल दोनों प्रकार के कण होते हैं। एक प्रकार के कणों की वृद्धि होने पर मनुष्य स्वस्थ नहीं रहता और अत्यन्त वृद्धि होने पर जी नहीं सकता। उस शिशु के भी रक्त-कण दोनों प्रकार के रहे होंगे और उसके रक्त-मांस की आभा गोदुग्ध की भांति श्वेत रही होगी।
उस अद्भुत शिशु को देखने के लिए हजारों-हजारों लोग आते और उसकी सुरभि से अलौकिक आनन्द का अनुभव करते।
वह शिशु जब जन्मा तब बेला भी अद्भुत थी। सब दिशाएं शांत और निर्मल। पवन का मन्द-मन्द प्रवाह । बसन्त ऋतु । सारी वनराजि विकस्वर हो रही थी। पेड़-पौधे नई कोपलों और नए पत्तों से लद रहे
थे।
चैत्र शुक्ला त्रयोदशी। उत्तराफाल्गनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग। मध्यरात्रि का समय ! विजयसूचक शकुन । ग्रहों की उच्च स्थिति। प्रकृति ने अपनी पूर्ण सुषमा के साथ शिशु का स्वागत किया।
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