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२६ : घर का वातावरण स्वस्थ बनाएं
अणुव्रत-आंदोलन स्वस्थ समाज निर्माण का संकल्प है। इसके लिए वह व्यक्ति-व्यक्ति के जीवन को संयम, सादगी और सदाचार से भावित करना चाहता है। व्यक्ति के जीवन-निर्माण में परिवार की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। परिवार का वातावरण जितना शांत, सात्त्विक और अणुव्रत-भावना के अनुरूप होता है, व्यक्ति के तदनुरूप ढलने की उतनी ही अधिक संभावना रहती है। इसलिए घर के वातावरण की स्वस्थता के प्रति सदैव सजगता बरतने की अपेक्षा है। इसके लिए यह अत्यंत आवश्यक प्रतीत होता है कि घर-घर में प्रति पक्ष एक पारिवारिक गोष्ठी हो, जिसमें कि घर-परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्य अनिवार्य रूप से सम्मिलित हों। यहां तक कि नौकर, कर्मचारी आदि की भी उसमें अनुपस्थिति नहीं रहनी चाहिए। उस गोष्ठी में अणुव्रत-प्रार्थना का संगान, अणुव्रत-साहित्य का वाचन और अणुव्रत-दर्शन व अणुव्रत-भावना पर चिंतन-मनन व विचार-विमर्श हो। इसके साथ ही घर-परिवार का प्रत्येक सदस्य पक्ष-भर में ज्ञात-अज्ञात में हुई भूलों, अशिष्ट व्यवहार एवं कटुता के लिए दूसरे-दूसरे सदस्यों से क्षमायाचना करे। इसी क्रम में मालिक नौकर से तथा नौकर मालिक से क्षमा मांगे। इससे घर-परिवार का वातावरण अत्यंत सौजन्यपूर्ण एवं मैत्रीपूर्ण बनेगा, पारस्परिक तनाव, कटुता, कलह और संघर्ष की स्थितियां नहीं रहेंगी, परिवार के प्रत्येक के मन सदस्य में अणुव्रत-भावना का सफल संचार होगा।
। घर-परिवार के स्तर से प्रारंभ कर यह क्रम आगे नगरव्यापी/नगर स्तरीय बनाया जा सकता है, ताकि पूरे नगर का वातावरण स्वस्थ बने, नगरवासियों में मैत्री, सद्भावना और शांति का विकास हो। देखने में यह उपक्रम सामान्य-सा लग सकता है, पर स्वस्थ समाज निर्माण की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी है। आशा करता हूं, लोग इस उपक्रम का पूरा-पूरा मूल्यांकन करेंगे।
सैंथिया, १८ फरवरी १९५९
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- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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