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२४ : छात्र-छात्राओं की जीवन-दिशा
शिक्षा का उद्देश्य
विद्यार्थी भविष्य निर्माता होते हैं। समाज और राष्ट्र का भविष्य आज के विद्यार्थियों पर ही निर्भर होता है। उनका जीवन जितना अधिक सुसंस्कारित होता है, समाज और राष्ट्र का भविष्य उतना ही अधिक उज्ज्वल होता है। जीवन सुसंस्कारित होने से मेरा तात्पर्य विद्यार्थी समझते ही होंगे। वह सत्य, सदाचार और अनुशासन के सांचे में ढला हुआ होना चाहिए। आज के विद्यार्थियों में इन तत्त्वों की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। दूसरे शब्दों में कहूं तो उनके जीवन का सही निर्माण नहीं हो रहा है। इसका कारण भी अस्पष्ट नहीं है। शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य आज भुलाया जा रहा है। शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य जीवन का निर्माण करना है, पर दुर्भाग्य से आज वह पुस्तकें रट लेना और उपाधियां प्राप्त कर लेना बन गया है। मैं विद्यार्थियों से कहना चाहूंगा कि वे शिक्षा के मूलभूत उद्देश्य पर अपनी दृष्टि केंद्रित कर अपने जीवननिर्माण की दिशा का उद्घाटन करें। विद्यार्थी योगी होता है
विद्यार्थी यह बात गंभीरता से समझें कि उनका यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समय है। अतः एक विद्यार्थी का जीवन कैसा होना चाहिए, इसकी स्पष्ट अवधारणा उनके मस्तिष्क में होनी चाहिए। मेरी दृष्टि में विद्यार्थी का जीवन एक योगी का जीवन है। योगी ध्यान-साधना में लगा रहता है। किसी के साथ वह अनुचित और अप्रिय व्यवहार नहीं करता। अपनी लक्ष्य-प्राप्ति के प्रति वह एकनिष्ठ बनकर जीता है। उसकी जीवन-शैली संयममय होती है। ठीक इसी तरह एक विद्यार्थी अपना ध्यान आत्म-केंद्रित रखे। उसके व्यवहार में अनुशासनहीनता, अशालीनता और अनौचित्य न हो। ज्ञानार्जन के साथ जीवन-शोधन एवं जीवन-निर्माण का
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- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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