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२३ : सबसे बड़ी संपत्ति
आशा की किरण
संसार के अन्यान्य देशों की तरह भारतवर्ष में बड़े-बड़े कलकारखाने नहीं हैं, पूंजी का बहुत संचार नहीं है। चंद्रलोक को लांघकर उत्तरोत्तर आगे बढ़नेवाले रॉकेट बना सकने की स्थिति में भी भारत नहीं है, परंतु इसमें मुझे राष्ट्र की वह कमी नहीं लगती, जो इसमें लगती है कि आज इस राष्ट्र में महावीर, बुद्ध और व्यास- जैसे व्यक्तित्व पैदा नहीं हो रहे हैं। निश्चय ही यह एक खेदजनक स्थिति है ।
भारतवर्ष में समय-समय पर अनेक दुष्काल पड़े, अनेक प्रकार की दूसरी - दूसरी कठिन परिस्थितियों से होकर भी राष्ट्र को गुजरना पड़ा, पर आज जैसी चिंता की स्थिति बनी है, वैसी अतीत में शायद कभी नहीं बनी। यह चिंता की स्थिति बनी है - नैतिक दुर्भिक्ष के कारण । आज अनैतिकता का प्रवाह जिस तेजी के साथ जन-जीवन को लीलता चला जा रहा है, उसे देख-सुन आत्मा में प्रकंपन पैदा होता है । मन में रहरहकर यह विचार उठता है कि भारत की यह क्या स्थिति बनी है ! जो राष्ट्र सारे संसार को नैतिकता और चरित्र की शिक्षा देता था, उस राष्ट्र में नैतिकता और चरित्र का इतना भयंकर दुर्भिक्ष ! सचमुच यह एक गंभीर बात है। बावजूद इसके, मैं निराश हताश नहीं हूं, बल्कि इसके उज्ज्वल भविष्य के प्रति आशान्वित हूं। इस आशान्विति का आधार ? आधार यह कि यहां की नैतिकता सर्वथा समाप्त नहीं हुई है, मरी नहीं है। वह मात्र मूर्च्छित है। यदि उसे चेतना की संजीवनी बूटी मिले तो वह पुनः जाग्रत हो सकती है, भारत का उज्ज्वल और गौरवशाली अतीत वर्तमान में झलक सकता है। मैं भारतीय जनों को आह्वान करता हूं कि वे अपने उज्ज्वल और गौरवशाली अतीत की पुण्य स्मृतियों से प्रेरणा लें, वे अपना वर्तमान संवारकर शुभ भविष्य का निर्माण करें। वे यह सचाई आत्मसात करें कि किसी राष्ट्र की सबसे बड़ी संपत्ति उसके नीतिनिष्ठ,
सबसे बड़ी संपत्ति
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