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________________ ७ : रक्षक स्वयं सुरक्षित बनें जन-कल्याण भी साधना है आज मैं पुलिस के लोगों के बीच उपस्थित हूं। उनसे मैं कुछ बातें कहना चाहता हूं। आपमें से कुछ लोग इस भाषा में सोच सकते हैं कि साधुओं का संसार से क्या संबंध, उन्हें तो अरण्य में वास करते हुए अपनी साधना करनी चाहिए। यद्यपि सापेक्ष दृष्टि से मैं यह चिंतन गलत नहीं मानता, क्योंकि अरण्यवासी साधकों की भी एक परंपरा है। वे अरण्य में रहकर ही साधना करते हैं, समाज के बीच नहीं आते, पर भगवान महावीर से मुझे जो साधना का क्रम मिला है, वह इससे भिन्न है। वह क्रम है-से गामे वा नगरे वा रण्णे वा."अर्थात साधना ग्राम में की जा सकती है, नगर में की जा सकती है, अरण्य में की जा सकती है, अन्यत्र कहीं भी की जा सकती है। उसे किसी स्थानविशेष से अनुबद्ध नहीं किया जा सकता। वस्तुतः साधना के प्रति उनका दृष्टिकोण बहुत व्यापक था। इसलिए उन्होंने साधक को उभयानुकंपी बताया। वह स्वकल्याण के साथ-साथ पर-कल्याण, जन-कल्याण के लिए भी प्रयत्नशील रहे, जनता का मार्ग-दर्शन करे, उसे आत्म-विकास की प्रेरणा दे। उन्होंने जन-कल्याण के इस कार्य को भी उसकी साधना का ही एक अंग बताया। उन्होंने कहा-'मौन रहना तपस्या है तो जनकल्याण के लिए उपदेश देना भी तपस्या है। भूखा रहना तपस्या है तो स्वाध्याय, सेवा आदि के लिए भोजन करना भी तपस्या है। ध्यान तपस्या है तो सोद्देश्य चलना भी तपस्या है......"बस, इतना-सा ध्यान रखना अपेक्षित है कि हर क्रिया सावधानीपूर्वक हो, संयमपूर्वक हो।' महावीर द्वारा बताया गया यही साधना-क्रम स्वीकार कर हम अपनी साधना कर रहे हैं। अतः हमने स्व-कल्याण के साथ-साथ जन-कल्याण के कार्य के साथ भी स्वयं को जोड़ रखा है। उसी क्रम में आज मैं आपके बीच आया हूं। रक्षक स्वयं सुरक्षित बनें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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