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आजकल सट्टे का व्यापार जोरों पर है। यह भी कोई पसीने का पैसा नहीं है। समाज में ऐसे अनेक लोग हैं, जो सट्टे के कारण बेकार हैं। श्रम उनसे होता नहीं । छप्पर फाड़कर सीधा धन आए कहां से? बिना पसीने का पैसा लाभदायक नहीं बनता। वह जैसा आता है, वैसे ही सीधा जाता है।
एक अधिकारी ने खूब रिश्वत खाई। आनंद की कामना में एक विघ्न आया। बराबर का नौजवान पुत्र चल बसा। स्त्री पागल हो गई। तीन लाख रुपए लोग खा गए। अब मांगे भी किससे ? घूस के पैसे बैंक में जाते नहीं, खाते में जाते नहीं । गवाह बने कौन ? मुकदमा चले कैसे ? अधिकारी को जी की बनी। अगला जन्म तो किसने देखा, उसे तो यहीं - का-यहीं फल मिल गया । अस्तु, कोई भले विश्वास कर या न करे, पर अंतिम सचाई यही है कि बुरे का फल बुरा होता है। जो विष- बीज बोया जाता है, वह अपने विषाक्त फल देगा - ही देगा ।
व्यापारी दुर्नीति से बचें
मैं व्यापार नहीं रोकता, दुर्नीति रोकना चाहता हूं। मैं व्यापारियों से जोर देकर कहना चाहूंगा कि वे व्यापार में अप्रमाणिकता न बरतें, विश्वासघात न करें। मिलावट न चलाएं, कम तौल-माप और नैतिकता - विरुद्ध व्यवहार न करें। व्यापारी इस बात की प्रतिज्ञा करें कि हम व्यापार में अनीति नहीं बरतेंगे।
नेहरूजी ने कहा कि प्रतिज्ञा लेनेवाला पालता है या नहीं, इस बात पर पहरा रहना चाहिए, पर मैं नहीं समझता कि पहरे की क्या जरूरत है। पहरा बुराई का प्रतिकार नहीं है। पुलिस के पहरे में क्या-क्या नहीं होता ? पहरा तो अपने मन का होना चाहिए, प्रतिज्ञा आत्मा से होनी चाहिए । कुछ लोग प्रतिज्ञा से कतराते हैं। मेरी दृष्टि में प्रतिज्ञा न करना आत्मा की कमजोरी है। हमें कमजोरी निकाल फेंकनी है। अणुव्रत आत्मकमजोरी की दवा है। वह अभ्यास सिखाता है । अभ्यास से ही आगे चलकर लक्ष्य सिद्ध होगा । व्यापारी इस बात का अणुव्रत के माध्यम से अभ्यास सीखें और देश में व्यापार के क्षेत्र में होनेवाला नैतिक पतन रोकें। देश का व्यापारी समाज बहुत बड़ा समाज है। उसके नैतिक बनने का अर्थ है- देश का बहुत बड़ा भाग नैतिक हो जाएगा, उन्नत बन
जाएगा।
जीवन और अर्थ
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