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________________ १. आर्जव या ऋजुभाव, ताकि विश्वास बढ़े। २. मार्दव या दयालुता, ताकि मैत्री बढ़े। ३. लाघव या नम्रता, ताकि सहृदयता बढ़े। ४. क्षमा या सहिष्णुता, ताकि धैर्य बढ़े। ५. शौच या पवित्रता, ताकि एकता बढ़े। ६. सत्य या प्रामाणिकता, ताकि निर्भयता बढ़े। ७. माध्यस्थ्य या आग्रहहीनता, ताकि सत्य-स्वीकरण की शक्ति बढ़े। किंतु इन सबको संयम की अपेक्षा है। एक हि साधे सब सधेएक संयम की साधना हो तो सब सध जाते हैं, नहीं तो नहीं। अहिंसा इसी का उपाय है, जो कि जैन-संस्कृति की सर्वोपरि देन मानी जाती है। प्रवर्तक धर्म पुण्य या स्वर्ग को ही अंतिम साध्य मानकर रुक जाता था। उसमें मोक्ष-पुरुषार्थ की भावना का जो उदय हुआ है, वह निवर्तक धर्म या श्रमण-संस्कृति का ही प्रमाण है। अहिंसा और मुक्ति-श्रमण-संस्कृति की ये दो ऐसी अलोक-रेखाएं हैं, जिनसे जीवन के वास्तविक मूल्य देखने का अवसर मिलता है। ___ जब जीवन का धर्म-अहिंसा या कष्टसहिष्णुता और साध्य-मुक्ति या स्वातंत्र्य बन जाता है, तब व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति रोके नहीं रुकती। आज की प्रगति की कल्पना के साथ ये दो धाराएं और जुड़ जाएं तो साम्य आएगा–भोगपरक नहीं, किंतु त्यागपरक, वृत्ति बढ़ेगी-दानमय नहीं किंतु अग्रहणमय; नियंत्रण बढ़ेगा दूसरों का नहीं, किंतु अपना। भारतीय संस्कृति की विशाल स्रोतस्विनी-श्रमण-संस्कृति का जो महान स्रोत अनिरुद्ध प्रवहमान है, वह जीवन की शांति में सहायक होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। .३१२ - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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