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________________ १०९ : सत्य धर्म को पहचानें अर्थ मात्र साधन है भारतीय संस्कृति संसार की एक महान संस्कृति है। इस संस्कृति ने सर्वोच्च मूल्य भोग, अर्थ और सत्ता को नहीं, अपितु त्याग और संयम को दिया है। यही तो कारण है कि भारतवर्ष में सम्मान और प्रतिष्ठा उन्हें मिली, जिन्होंने धन-वैभव, भोग-विलास और सत्ता का परित्याग कर संयम और आत्म-साधना का पथ अंगीकार किया, किंतु यह कितने खेद की बात है कि आज भारतीय लोक-मानस का झुकाव अर्थ की ओर बढ़ता जा रहा है। इस कारण वह अधिक-से-अधिक धन बटोरना चाहता है। इस चाह से बंधा होने के कारण वह अर्थार्जन में साधन-शुद्धि की बात भी भूल रहा है, करणीय-अकरणीय का विवेक भी नहीं कर पा रहा है। फलतः आज बाजार में शुद्ध आटा, शुद्ध घी और शुद्ध तैल तक का मिलना कठिन हो रहा है। मानव यह बात क्यों भूल रहा है कि अर्थ जीवन का साध्य नहीं, अपितु मात्र जीवन चलाने का एक साधन है? अपेक्षा है, मानव का दृष्टिकोण बदले, उसे वह सम्यक बनाए। जब यह परिवर्तन नहीं होता, तब तक समाज में व्याप्त अनैतिकता, भ्रष्टाचार, शोषण आदि दुष्प्रवृत्तियां मिट सकें, यह असंभव है। धर्म का सही स्थान ___मुझे यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि धार्मिक कहलानेवाले लोग भी अनैतिकता, अप्रामाणिकता, शोषण और भ्रष्टाचार करते हैं। इसका कारण भी स्पष्ट है। वे कहलाने मात्र के धार्मिक हैं, वास्तव में धार्मिक नहीं हैं। कोई व्यक्ति वास्तविक धार्मिक तभी बनता है, जब धर्म उसके जीवन में उतरे; और धर्म के जीवन में उतरने के बाद व्यक्ति थोड़ेसे अर्थ के लिए अनैतिकता, भ्रष्टाचार, शोषण-जैसी प्रवृत्तियां नहीं कर • २६२ - - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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