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________________ १ : अध्ययन और अध्यापन के प्रति सम्यक दृष्टिकोण बने विद्याध्ययन क्यों आज मैं आरा के विद्या-प्रांगण में आया हूं। मेरे सामने सहस्रों की संख्या में विद्यार्थी उपस्थित हैं। विद्यार्थी किसी समाज और राष्ट्र के भावी कर्णधार होते हैं, भविष्य होते हैं। उनके निर्माण के आधार पर ही समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है। विद्याध्ययन विद्यार्थियों के जीवन-निर्माण के लिए है, पर मुझे लगता है कि आज के विद्यार्थियों ने विद्याध्ययन का यह पवित्र उद्देश्य भुला दिया है। उसके स्थान पर उसे पैसा कमाने का साधन बना लिया है। उसके माध्यम से डिप्लोमा या कोई अन्य आकर्षक-सी डिग्री प्राप्त कर ऊंची नौकरी प्राप्त कर लेना उनका लक्ष्य बन गया है। किसी को यह बात अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकती है, पर मेरी दृष्टि में यह एक कटु यथार्थ से परिचित होना है। यदि यह यथार्थ न हो तो वे परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए कभी अनुचित साधन नहीं अपनाते, उनका खुलकर उपयोग नहीं करते। कहने में संकोच होता है, पर स्थिति तो यहां तक पहुंच गई है कि विद्यार्थियों के लिए परीक्षाकेंद्रों में पुलिस तैनात करनी पड़ती है। ओह! कितना गिर गया है राष्ट्र के विद्यार्थियों का नैतिक स्तर! आप तुलना करें, एक तरफ तो विदेशों में, जैसाकि मैंने सुना है, परीक्षाकेंद्र में निरीक्षक का उपस्थित रहना भी विद्यार्थी अपना अपमान समझते हैं और दूसरी तरफ इस भारत राष्ट्र में, जो अतीत में सारे संसार को अध्यात्म और चरित्र की शिक्षा देने के लिए प्रतिष्ठित था, गौरवान्वित था, पुलिस के कड़े पहरे में परीक्षाएं संपन्न करानी पड़ती हैं। क्या भारतीय विद्यार्थियों के लिए यह शर्म की बात नहीं है? मैं तो मानता हूं कि यह शर्म महसूस करने से भी अधिक उनके लिए आत्मालोचन का विषय है। मैं उपस्थित विद्यार्थियों के माध्यम अध्ययन और अध्यापन के प्रति सम्यक दृष्टिकोण बने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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